हमारा मूल स्वभाव

हमारा मूल स्वभाव

हमारा मूल स्वभाव

         पानी को कितना भी गर्म कर लें पर वह थोड़ी देर बाद अपने मूल स्वभाव में आकर जायेगा शीतल हो जायेगा। इसी प्रकार हम कितने भी क्रोध में, भय में अशांति में रह लें थोड़ी देर बाद बोध में, निर्भयता में और प्रसन्नता में हमें आना होगा क्योंकि यही हमारा मूल स्वभाव है।

        इतना ऊर्जा सम्पन्न जीवन परमात्मा ने हमें दिया है स्वयं का तो क्या लाखों लाखों लोगों का कल्याण करने के निमित्त भी हम बन सकते है। जरुरत है स्वयं की शक्ति और स्वभाव समझने की। 

        सबसे बड़ी अगर जीवन पथ में अगर कोई बाधा है तो वह है निराशा। हम थोड़ी देर में ही परिस्थिति के आगे घुटने टेककर उसे अपने ऊपर हावी कर लेते हैं। किसी संग दोष के कारण, किन्ही बातों के प्रभाव में आकर निराश हो जाना, यह संयोग जन्य स्थिति है। आनंद , प्रसन्नता, उत्साह, उल्लास और सात्विकता मूल स्वभाव तो हमारा यही ही है।