आज का वेदमंत्र,
आज का वेदमंत्र,
आज का वेदमंत्र, अनुवाद महात्मा ज्ञानेन्द्र अवाना जी द्वारा, प्रचारित आर्य जितेन्द्र भाटिया द्वारा
दधन्वे वा यदीमनु वोचद्ब्रह्माणि वेरु तत्।
परि विश्वानि काव्या नेमिश्चक्रमिवाभवत्॥ ऋग्वेद २-५-३॥
जिस प्रकार सूर्य जीवन के जल को धारण किए हुए हैं और समस्त सौर परिवार की धुरी के समान है। उसी प्रकार ब्रह्म ज्ञान का वेता विद्वान ब्रह्मविषय आदि ज्ञान की धुरी बन जाता है।
Just as the Sun holds the water of life and is like the axis of the entire solar family. In the same way, the scholar having Brahman knowledge becomes the axis of the divine knowledge. (Rig Veda 2–5–3)