ईश्वर का स्वरुप

ईश्वर का स्वरुप

ईश्वर का स्वरुप

ईश्वर का स्वरुप

     परमात्मा के गुण और कार्यों का अवलोकन करने पर विद्वानों ने मुख्यतः परमात्मा के चार कार्य बताये हैं।ये कार्य केवल परमात्मा ही कर सकता है,अन्य किसी और का सामर्थ्य नहीं है।मनुष्य कितना भी बड़ा हो जावे,किन्तु उसकी तुलना परमात्मा से नहीं की जा सकती।इसलिए सर्वप्रथम देखते हैं,परमात्मा क्या करता है।

परमात्मा के प्रमुख चार कार्य हैं-

(१) सृष्टि का निर्माण करना,
(२) वेदों का प्रकाश करना
(३) सृष्टि की रक्षा व पालन करना,
(४) सृष्टि का प्रलय करना,
(५ ) और प्रत्येक व्यक्ति को उसके कार्यों का फल देना।

     ईश्वर के अतिरिक्त इन कार्यों को करने वाली संसार में अन्य कोई शक्ति नहीं हो सकती।मन में जब यह विचार दृढ़ हो जावे तो परमात्मा की विशालता का व शक्ति का अनुमान लगा सकते हैं,फिर उसके स्थान पर किसी दूसरे की उपासना नहीं होगी।

     आज तो साधारण-सी क्षमता रखने वाले,हाथ की सफाई रखने वाले व्यक्तियों को भी भगवान् कहकर सम्बोधित किया जा रहा है।ईश्वर के स्थान पर अल्पज्ञ देहधारी मनुष्य की भी पूजा हो रही है,हजारों व्यक्ति भगवान बने हुए हैं।आज इस देश में भगवान् कहलाने वाले व्यक्तियों की संख्या सैकड़ों में पहुँच चुकी है और आगे भी कहाँ जाकर रुकेगी अभी इसका अनुमान भी नहीं है।

     ईश्वर,परमपिता,प्रभु को भी भगवान् कहते हैं।यदि इस एक ईश्वर को भगवान् के नाम से पुकारें और उसी जगनियन्ता को ही सम्बोधित करें तो यह भगवान् ईश्वर के लिए माना जाना चाहिए,जो ठीक भी है।

     किन्तु भगवान् शब्द का प्रयोग संसार के उन तमाम महापुरुषों,विद्वानों के लिए भी किया जाता है जिनके जीवन में किए गए कर्म महान थे,जनसाधारण के कार्यों से ऊपर उठकर आदर्शमय थे।जिन्होंने निष्काम भाव से समाज को कुछ दिया है और इस आदर्शमय पवित्र जीवन को समाज ने सम्मान प्रदान कर भगवान् कहा।

     भगवान् राम,भगवान् कृष्ण,भगवान् मनु आदि कई नाम हैं जिनका जीवन आदर्श बन गया।किन्तु इन्हें ईश्वर की संज्ञा नहीं दी जा सकती।इनके प्रति आदर्श भाव,सम्मान के भाव,सदा स्मरणीय भाव होना अच्छा है,किन्तु जगनियन्ता के रुप में नहीं माना जाना चाहिए।

    जीव अल्पज्ञ हैं,परमात्मा सर्वज्ञ है,जीव की शक्ति सीमित है,परमात्मा सर्वशक्तिमान है,आत्मा को देह धारण करनी होती है,किन्तु परमात्मा को नहीं,वह निराकार है।जीवात्मा को सुख-दुःख,राग-द्वेष होता है,परमात्मा इन सबसे ऊपर है।वह सदा आनन्दस्वरुप है,इसलिए उसे सत्-चित्-आनन्द (सच्चिदानन्द) कहा जाता है।

    ईश्वर सर्वज्ञ है,सर्वव्यापक है,कण-कण की,हर क्षण की उसे जानकारी है,क्योंकि उसके अन्तर्गत यह पूरी सृष्टि है।

   अनेक भगवानों की पूजा हो रही है,अनेक चित्रों और स्टेच्यू को बड़ा चमत्कारी माना जा रहा है।

    आज संसार में अनेक बड़ी-बड़ी दुर्घटनाएँ हो रही हैं।
संसार अनेक कारणों से दुःखी है।बाढ़ से,भूकम्प से,मानवीय अत्याचारों से।भूकम्प,सुनामी का कहर,आतंकवादियों की क्रूरता,सूखे व बाढ़ से लाखों जन-जीवन पीड़ित हुए हैं।जब इतने भगवान अभी यहाँ पल रहे हैं,तो आश्चर्य है,किसी को भी इन घटनाओं का पूर्वाभास नहीं हुआ?यदि नहीं हुआ तो फिर उन्हें सर्वज्ञ व सर्वव्यापक कैसे मानेंगे,जो परमात्मा का प्रमुख गुण है।और यदि इन्हें जानकारी थी और फिर भी अपने लाखों भक्तों को इसकी जानकारी नहीं दी,तो इनसे बड़ा क्रूर,पापी कोई नहीं हो सकता है।

    इसलिए उस ईश्वर को जैसा हमारे महापुरुषों ने और विश्व के सर्वोत्तम व सम्पूर्ण ज्ञान के भण्डार वेद ने बताया है,उस पर विश्वास कर एक विचार बनाकर जीवन को सफल बनावें और ईश्वर का प्रतिक्षण सान्निध्य प्राप्त करें।
 

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