अंतःकरण चतुष्टय क्या हे 

अंतःकरण चतुष्टय क्या हे 

अंतःकरण चतुष्टय क्या हे 


प्रश्न-दीदी नमस्ते
यह अंतःकरण चतुष्टय क्या क्या इसके कार्य समझना चाहता हूँ??
उत्तर-
लगता है भाई आपने वैदिक वाड.मय में अंतःकरण चतुष्टय को पढा है।
हमारे अंतःकरण चतुष्टय में चार पदार्थ हैं।
पहला मन, दूजा बुद्धि, तीजा चित्त, और चौथा अहंकार।
मन जहां माइंड है वहीं बुद्धि इंटलेक्ट और चित्त कोंसिसनेस और अहंकार ईगो/विल।
अंतःकरण हमारे शरीर का सूक्ष्म भाग है यह सूक्ष्म शरीर के अंतर्गत आता है। जो अदृश्य रहता है। स्थूल शरीर दिखाई देता है किन्तु सूक्ष्म शरीर का यह सूक्ष्म भाग बाह्य नेत्रेन्द्रिय से नहीं अंदर से अनुभव होता है।
यह चारों ही पदार्थ जड़ हैं जड़ प्रकृति से निर्मित होने से।
सबका अपना अलग अलग कार्य है। मन का कार्य संकल्प विकल्प करना,
बुद्धि का कार्य क्या ठीक क्या ठीक नहीं अर्थात् सत्य असत्य का निर्णय करना। योगदर्शन में चित्त और मन को एक माना है किंतु कार्य की दृष्टि से हम दो पृथक सत्ता मान लेते हैं। दो कार्यों में एक तो संकल्प विकल्प करना जो मन का है और दूजा स्मृति उठाना जो चित्त का है।
अहंकार के द्वारा जीवात्मा इच्छा और मैं कर्तापन को अनुभव कर कहता है।
जीवात्मा स्वयं चेतन पदार्थ है उसके यह चार जड़ आंतरिक साधन हैं इनकी सहायता से सभी स्थूल शरीर की दशों इंद्रियों से कार्य करता है। देखना, सूंघना खाना -पीना,चलना, छूना, ग्रहण करना, देना-लेना मल- मूत्र त्यागना इत्यादि व्यवहार जीवात्मा सम्पादित करता है।
मन इन सभी इंद्रियों का स्वामी है क्योंकि मन के आदेश पर ही सभी इंद्रियां कार्यरत होती हैं। यह मन एक चाकू की तरह है जो जड़ होने से अपने आप कुछ नहीं कर सकता,किन्तु जैसे चाकू से सब्जी भी काटी जाती है और गला भी। उसी तरह मन बन्धन में भी डालता है और मोक्ष की प्राप्ति भी करवाता है।
मन हमारा शत्रु भी है और मित्र भी। सुख भी और दुख भी दोनों इसी मन के द्वारा होते हैं। मन से भी चाकू की तरह एक बार में एक ही वस्तु पकड़ी जा सकती है।
जिस वस्तु में अधिक रुचि होती है उसी तरफ यह लग जाता है। संसार में रुचि अधिक तो संसार में लगा रहेगा, संसारपति में अधिक तो योगाभ्यासी बन,उसके अनुकूल हो ब्रह्म दर्शन तक कर लेगा।
क्या करना है इसका निर्णय यह बुद्धि करती है क्या हमारे लिए ठीक-सत्य क्या ठीक नहीं। इसके लिए जीवात्मा का चित्त सहायक होता है जैसे संस्कार-वासना चित्त में होते है जीवात्मा वैसा निर्णय करता है। फिर उसी ओर चल पड़ता है। इस तरह ये चार अंतः म्यूट-शांत ईमानदार और बेईमान प्रहरी हैं जो मिलकर इस देह सुर नगरी को लुटवा भी सकते हैं सुरक्षित रख ऊँट-उच्च सिंहासन पर भी पहुंचा सकते हैं। देखना हमने है इन प्रहरियों को नियंत्रित कर सुधार के रखना है या स्वयं इनकी गिरफ्त में आना।
-आचार्या विमलेश बंसल आर्या

 

 sarvjatiy parichay samelan,marriage  buero for all hindu cast,love marigge ,intercast marriage  ,arranged marriage 

 rajistertion call-9977987777,9977957777,9977967777or rajisterd free aryavivha.com/aryavivha app