वैदिक विचार
वैदिक विचार
प्रायः सभी लोगों की यह इच्छा होती है कि लोग हमें अच्छा कहें। समाज में हमारी प्रसिद्धि (Reputation) अच्छी हो। यदि लोग आपको अच्छा कहेंगे, तो क्या यूँ ही अच्छा कहेंगे, या आपको कुछ अच्छा आचरण करना भी पड़ेगा? आप का उत्तर यही होगा कि, हां उत्तम आचरण करना होगा। तभी लोग हमें अच्छा कहेंगे.
तो दूसरे लोग हमें अच्छा कहें, इस भावना से कुछ लोग तो अच्छा आचरण करते हैं। और कुछ लोग आचरण तो उतना अच्छा नहीं करते, परन्तु अच्छे आचरण का दिखावा अवश्य करते हैं।
दूसरे लोग भी पहचानने में कुशल होते हैं। सब लोग तो इतने कुशल नहीं होते, कि वे आपके उत्तम आचरण अथवा दिखावे को ठीक से पहचान लेवें। परंतु कुछ न कुछ बुद्धिमान लोग ऐसे अवश्य होते हैं जो वास्तविकता को जान लेते हैं, कि इस व्यक्ति का आचरण वास्तव में उत्तम है, या यह उत्तम आचरण करने का दिखावा मात्र करता है।
तो उत्तम आचरण करना क्यों आवश्यक है? क्योंकि आपकी इच्छा यही है कि, लोग हमें अच्छा कहें।
जब तक आप जीवित हैं, तभी तक आप अपनी प्रशंसा सुनना चाहते हैं, या मृत्यु के बाद भी? मृत्यु के बाद भी चाहते हैं, कि हमारी प्रशंसा आगे भी चलती रहे।
तो कहने का अभिप्राय यह हुआ कि आपका जीवन काल छोटा है, और आपकी इच्छा बड़ी है, कि जीवन के बाद भी लोग हमारी प्रशंसा करें।
आप की यह इच्छा तभी पूरी हो पाएगी, जब आप का आचरण उत्तम होगा। जैसे हम आज श्रीराम जी, श्रीकृष्ण जी आदि की प्रशंसा करते हैं कि वे बहुत महान पुरुष थे। और कंस रावण दुर्योधन आदि की हम निंदा करते हैं कि वे लोग अच्छे नहीं थे।
अर्थात आपकी प्रशंसा या निंदा की आयु, आपकी जीवन काल से भी बड़ी है। इसलिए आपको उत्तम आचरण वाला बनना ही होगा। जिससे कि आपके जीवन काल के बाद भी लोग आपकी प्रशंसा करते रहें, और आपके उत्तम आचरण से प्रेरणा प्राप्त करके अपने जीवन का सुधार सँवार करते रहें।
यदि आप ऐसा करेंगे, तो आपको इससे बहुत प्रसन्नता भी मिलेगी और पुण्य भी मिलेगा।
- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक