वैदिक पद्धति के अनुसार होली कैसे मनायें

वैदिक पद्धति के अनुसार होली कैसे मनायें

वैदिक पद्धति के अनुसार होली कैसे मनायें

प्रातःजागरण - प्रातः जागरण के मंत्रों के साथ 

योगाभ्यास  - प्राणायाम, आसन, ध्यान और भ्रमण करना। 

स्नान - रात्रि को पानी में पलाश के फूल, गुलाब फूलों की पंखुड़ियों को भिगो कर रखना और प्रातः काल उससे स्नान करना। 

आयुर्वेद - खाली पेट नीम की कोमल पत्तियों का १५ दिन तक सेवन करना, नीम पर जो फूल आते हैं उसका सब्जी में प्रयोग करना और नीम की दातुन करना 

उपासना - ध्यान, संध्या अथवा गायत्री का जप करना

देवपूजा - नवसस्येष्टि (यज्ञ) फाल्गुन पूर्णिमा को अपने-अपने घरों में वैदिक विद्वानों को बुलाकर यज्ञ करना। 

विशेष सामग्री - हवन सामग्री में गेहूं की नई बाल, हरा-चना, मसूर, मूंग, अरहर, तिलहन, १०-१०ग्राम की मात्रा में मिलाना, धान की खिले लाजा (खोई) ५० ग्राम, खांड या बुरा अथवा गुड़ ५० ग्राम मिलाना इसका तात्पर्य यह है कि रवि की जो फसलें आई है उनका सबसे पहला अधिकार देवताओं को का होता है। देवताओं को उनका पहला भाग देना। वैदिक संस्कृति का पालन करना। 

मोहनभोग - स्थालीपाक केसर युक्त मीठे चावल बनाना, खीरानंद दूध डालकर मोटी खीर बनानी और बृहद यज्ञविधि के पवमान वाले मन्त्रो से आहुतियां देवें। 

सोमपान (अमृत) -  यज्ञ के पश्चात गिलोय की टहनी का रस निकालकर १०० ग्राम रस में ३० ग्राम शहद मिलाकर हवन में उपस्थित लोगों को पान कराना जिससे वर्ष पर बुखार और दूसरी व्याधि ना हो। 

दान एवं सहायता - होलिकोत्सव पर वेदों का प्रचार करने वाले पुरोहित, आचार्य, विद्वान, सन्यासी तथा गुरूकुलों, गौशाला, अनाथालय का यथासंभव सहायता करना  

सामाजिक कृत्य -  अपने अपने संस्थान, संगठन से जुड़े हुए समाजों के द्वारा विभिन्न कार्यक्रम कविता, भजन, प्रीति सम्मेलन, हास्य कविताएं (किंतु अश्लील ना हो) का आयोजन करना। परस्पर मिल कर एक दूसरे को शुभकामनाएं देना, दूर स्थित अपने मित्रों परिजनों को दूरभाष के द्वारा शुभकामनाएं प्रदान करना फोन करके उनका हाल चाल एवं स्वास्थ्य पूछना। परिवार समाज एवं व्यापार से संबंधित लोगों के साथ हुए गिले-शिकवे दूर करना, वैमनस्य ईर्ष्या के भाव को दूर करना, प्रेम एवं भाईचारा बढ़ाना, समाज के पिछड़े तबके एवं उपेक्षित लोगों को सम्मानित करना, उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए प्रयास करना। 

होली जलाना - होली जलाना यद्यपि  हवन का अपभ्रंश है बड़े-बड़े हवन का बिगड़ा हुआ रुप है तथापि उसको सुन्दर ढंग से करने में कोई हानि नही है जैसे सुगंधित पदार्थ गाय का घी, केसर, जायफल, जावित्री, लौंग, इलायची, तेजपत्ता, दालचिनी, सुखे मेवे, ताल मखाना, सुखा नारियल, गुग्गुल, चन्दन, धूप उपरोक्त हवन सामग्री एवं विशेष सामग्री में लिखे पदार्थ यथासंभव डाले जिससे बड़े पैमाने पर पर्यावरण शुद्ध  हो। लोगों को दूसरों की लकड़ी नही चुरानी चाहिए। लकडी में सिर्फ आम, बेल, बड़, पीपल, पलाश की ही होनी चाहिए इसका विशेष रुप से ध्यान रखना चाहिए। कपूर का प्रयोग सिर्फ अग्नि जलाने के लिये करें।

रंगो की होली : १० मार्च मंगलवार को अच्छे पुष्प जैसे पलाश के फूल, गुलाब के फूल, चंपा, चमेली इत्यादि से बने गुलाल का प्रयोग करना। हानिकारक केमिकल वाले रंगों का बहिष्कार करना। जिसकी इच्छा न हो उनको जबरदस्ती रंग न लगाना। अगर लगा भी दिया तो कहना - "होली है भाई होली है बुरा न मानो होली है" किंतु महिलाओं के साथ अभद्रता नहीं करना, उनके सम्मान का ध्यान रखना।