: स्त्रियों को वेद पढ़ने का अधिकार :

: स्त्रियों को वेद पढ़ने का अधिकार :

: स्त्रियों को वेद पढ़ने का अधिकार :

!!!---: स्त्रियों को वेद पढ़ने का अधिकार :---!!!
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वेदों से प्रमाण
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 यथे॒मां वाचं॑ कल्या॒णीमा॒वदा॑नि॒ जने॑भ्यः।
 ब्र॒ह्म॒रा॒ज॒न्या᳖भ्यां शूद्राय॒ चार्या॑य च॒ स्वाय॒ चार॑णाय च। 
प्रि॒यो दे॒वानां॒ दक्षि॑णायै दा॒तुरि॒ह भू॑यासम॒यं मे॒ कामः॒ समृ॑ध्यता॒मुप॑ मा॒दो न॑मतु ॥
(शुक्लयजुर्वेदः - २६/२)

ऋषि :-- लौगाक्षिः ।। देवता -- ईश्वरः ।। छन्दः -- विराडत्यष्टिः ।। स्वरः --- गान्धारः ।।

 पदार्थान्वयभाषाः- हे मनुष्यो ! मैं ईश्वर (यथा) जैसे (ब्रह्मराजन्याभ्याम्) ब्राह्मण, क्षत्रिय (अर्याय) वैश्य (शूद्राय) शूद्र (च) और (स्वाय) अपने स्त्री, सेवक आदि (च) और (अरणाय) उत्तम लक्षणयुक्त प्राप्त हुए अन्त्यज के लिए (च) भी (जनेभ्यः) इन उक्त सब मनुष्यों के लिए (इह) इस संसार में (इमाम्) इस प्रगट की हुई (कल्याणीम्) सुख देनेवाली (वाचम्) चारों वेदरूप वाणी का (आवदानि) उपदेश करता हूँ, वैसे आप लोग भी अच्छे प्रकार उपदेश करें। जैसे मैं (दातुः) दान देने वाले के संसर्गी (देवानाम्) विद्वानों की (दक्षिणायै) दक्षिणा अर्थात् दान आदि के लिये (प्रियः) मनोहर पियारा (भूयासम्) होऊँ और (मे) मेरी (अयम्) यह (कामः) कामना (समृध्यताम्) उत्तमता से बढ़े तथा (मा) मुझे (अदः) वह परोक्षसुख (उप, नमतु) प्राप्त हो, वैसे आप लोग भी होवें और वह कामना तथा सुख आप को भी प्राप्त होवे।

 भावार्थभाषाः- इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। परमात्मा सब मनुष्यों के प्रति इस उपदेश को करता है कि यह चारों वेदरूप कल्याणकारिणी वाणी सब मनुष्यों के हित के लिए मैंने उपदेश की है, इस में किसी को अनधिकार नहीं है, जैसे मैं पक्षपात को छोड़ के सब मनुष्यों में वर्तमान हुआ पियारा हूँ, वैसे आप भी होओ। ऐसे करने से तुम्हारे सब काम सिद्ध होंगे।

 अर्थात् – परमेश्वर उपदेश करते हैं कि जैसे मैं सब मनुष्यों के लिये इस कल्याणी वेदवाणी का उपदेश करता हूँ वैसे सब मनुष्य किया करें । इसमें प्रजनेभ्यः शब्द तो है ही वैश्य, शूद्र और अति शूद्र आदि की गणना भी आ गई है । यह बड़ा सुस्पष्ट प्रमाण है वेद से की वेदों को पढ़ने का अधिकार ईश्वर ने सभी मन्युष्यों को दिया है।

प्राचीन काल की वेद विदुषी महिलाएँ
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ऋषि मन्त्रद्रष्टा होते हैं, ऋषिकायें भी मन्त्रद्रष्टा होती हैं । लोपामुद्रा, गार्गी, मैत्रेयी इत्यादि कई इतिहास प्रसिद्ध ऋषिकायें हैं । सोलह ऋषिकाएँ ऋग्वेद में हैं।
संस्कारों में स्त्रियाँ मन्त्र पाठ करती थीं “इमं मन्त्रं पत्नी पठेत्” ऐसा कर्मकाण्ड के ग्रन्थों में निर्देश है अतः स्त्री का मन्त्र पाठ स्वतः सिद्ध है।

कन्याओं का उपनयन
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 कन्याओं का भी उपनयन होता था और आज भी बहुत सारे वैदिक परिवारों में कन्याओं का उपनयन होता है
और स्त्रियाँ यज्ञोपवीत पहनती हैं । सन्ध्या और अग्निहोत्र करती हैं, वेदपाठ भी करती हैं । 

निर्णय सिन्धु तृतीय परिच्छेद में लिखा है -

 "पुराकल्पेतु नारीणा मौञ्जीबन्धनमिष्यते। अध्ययनञ्च वेदानां भिक्षाचर्यं तथैव च॥"

 इसमें यज्ञोपवीत और वेदों का अध्ययन दोनों का विधान है।

हारीत संहिता में दो प्रकार की स्त्रियों का उल्लेख हैं:-
(१) ब्रह्मवादिनी
(२) सद्योवधू ।

 ब्रह्मवादिनी - तत्र ब्रह्मवादिनीनाम् उपनयनं अग्निबधनं वेदाध्ययनं स्वगृहे भिक्षा इति।

पराशर संहिता के अनुसार ब्रह्मवादिनी स्त्रियों का उपनयन होता है, वे अग्नि होत्र करती हैं, वेदाध्ययन करती हैं और अपने परिवार में भिक्षावृत्ति करती हैं।

सद्योबधू- ‘सद्योबधूनां तू उपस्थिते विवाहे कथञ्चित् उपनयनं कृत्वा विवाहः कार्यः।' - सद्योवधू वे स्त्रियाँ हैं जिनका विवाह के समय उपनयन करके विवाह कर दिया जाता है। जैसा आजकल पुरुषों के विवाह में कई जगह होता है।

वेद में उपनीता स्त्री
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 ऋग्वेद के मण्डल १० सूक्त १०९ मन्त्र ४ में लिखा है - “भीमा जाया ब्राह्मणस्योपनीता” यहाँ उपनीता जाया बहुत सुस्पष्ट है।

 आचार्या और उपाध्याया वे स्त्रियाँ है, जो स्वयं पढ़ाती हैं नहीं तो आचार्य की स्त्री आचार्यानी और उपाध्याय की स्त्री उपाध्यायानी कहलाती हैं।

शंकर दिग्विजय में मण्डन मिश्र की पत्नी भारती देवी के विषय में लिखा है:-

'शास्त्रणि सर्वाणि षड्वेदान् काव्यादिकान्वेत्ति यदत्र सर्वम्।'
इसमें भारती देवी के षडङ्गवेदाध्ययन की बात सुस्पष्ट है।

कौशल्या का अग्निहोत्र
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 अग्निहोत्र में वेदमन्त्र बोले जाते हैं और कौशल्या अग्निहोत्र करती थी वाल्मीकि रामायण में अयोध्या काण्ड अः २०-१५ श्लोक में द्रष्टव्य है:-

 साक्षौमवसना हृष्टा नित्यं व्रतपरायणा।
अग्नि जुहोति स्म तदा मन्त्रवत्कृतमज्जला।।

अर्थात,कौशल्या रेशमी वस्त्र पहने हुए व्रत पारायण होकर प्रसन्न मुद्रा में मन्त्र पूर्वक अग्निहोत्र कर रही थी। इसी प्रकार अयोध्या काण्ड आ० २५ श्लोक ४६ में कौशल्या के यथाविधि स्वतिवाचन का भी वर्णन है।

सीता की सन्ध्या
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 लंका में हनुमान सीता को खोजते हुए अशोक वाटिका में गये किन्तु उन्हें सीता न मिली । हनुमान ने वहाँ एक पवित्र जल वाली नदी को देखा । हनुमान को निश्चय था कि यदि सीता यहाँ होगी तो सन्ध्या का समय आ गया है और सीता यहाँ सन्ध्या करने के लिये अवश्य आयेंगी। 

 सुन्दरकाण्ड अ० १४, श्लोक ४९ में लिखा है:-

 सन्ध्याकालमनाः श्यामा ध्रुवमेष्यति जानकी।
नदीं चेमांशुभजला सध्यार्थ वरवर्णिनी॥

अर्थात् वर वर्णिनी सीता इस शुभ जल वाली नदी पर सन्ध्या करने के निमित्त अवश्य आयेंगी।

अतः वेदमंत्रो के प्रमाणों से सिद्ध है कि वेद मनुष्य मात्र के लिये हैं और 'धर्मजिज्ञासमानानां प्रमाणं परमं श्रुतिः' धर्म के लिये वेद परम प्रमाण हैं । किसी वेद संहिता में या वैदिक ऋषि कृत ग्रन्थ में स्त्रियों के वेद पढ़ने का निषेध नहीं है । वेदों की लोपामुद्रा, गार्गी, भारती आदि स्त्रियाँ विदुषी थीं और वेद पढ़ी थीं। आज भी वेद पढ़ती हैं ।

ऊपर जितने भी प्रमाण दिए गये हैं, उनमे से दो प्रमाण तो वेद से ही है । जो पाखंडियो के सभी गलत सिद्धान्तों को धराशायी कर गलत सिद्ध कर देता है । इस बात का काट करते हैं कि स्त्रियां व शूद्र वेद नहीं पढ़ सकते । बाकी जितने भी प्रमाण अन्य ग्रन्थों से दिये गये हैं, उससे भी ये सिद्ध हो जाता है कि स्त्रियों का भी यज्ञोपवीत होता है, होता था और होता रहेगा तथा शुद्र व स्त्रियां तो क्या संसार के सभी मन्युष्यों को वेद पढ़ने का अधिकार प्राप्त है । ये स्वतः प्रमाणों से सिद्ध है। 

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