शंका:- वेद का ज्ञान ईश्वर ने कैसे दिया?
शंका:- वेद का ज्ञान ईश्वर ने कैसे दिया?
धर्म के विषय में भ्रांतियाँ और उनका निवारण
शंका:- वेद का ज्ञान ईश्वर ने कैसे दिया?
समाधान:- एक बार एक मेले में हिन्दू समूह के सामने एक मौलाना इस्लामिक प्रचार करते हुए जोर जोर से चिल्ला रहा था और कह रहा था कि क्या यहाँ कोई हिन्दू हैं जो मुझे यह बता सके कि वेदों का ज्ञान ऊपर वाले ने आदम जात को कैसे दिया क्यूंकि वेद जब इस धरती पर आये तो न कोई आकाशवाणी हुई और न ही कोई पैगम्बर आया हिन्दू समाज में हुआ फिर यह ज्ञान आदम को कैसे नसीब हुआ था। इससे तो यही मालूम चलता हैं कि वेद भगवान का दिया ज्ञान नहीं हैं अपितु मानव कि स्वयं कि कल्पना हैं, इससे पाक तो अल्लाह का दिया क़ुरान हैं जिसे स्वयं अल्लाह ने मुहम्मद साहिब के माध्यम से दिया था।
श्रोताओं में गुरुकुल कांगड़ी का एक स्नातक भी था जो कुछ दूरी पर खड़ा था, उसने मौलाना से जोर से पूछा कि मौलाना कि क्या शंका हैं, मौलाना ने दोबारा अपनी शंका ऊँची आवाज़ में दोहरा दी, वह स्नातक अब मंच के कुछ समीप आ गया और उसने पहले से धीमी आवाज़ में दोबारा मौलाना से उसकी शंका पूछी, मौलाना ने वही शंका दोबारा से मगर पहले से धीमी आवाज़ में दोहरा दी, स्नातक अब मंच के और समीप आ गया और उसने पहले से भी धीमी आवाज़ में दोबारा मौलाना से उसकी शंका पूछी, मौलाना ने वही शंका दोबारा से मगर पहले से भी धीमी आवाज़ में दोहरा दी, स्नातक अब मंच पर आकर मौलाना के बिलकुल निकट खड़ा हो गया और फिर से उनकी शंका को पूछा , इस बार मौलाना ने सामान्य आवाज़ में अपनी शंका प्रस्तुत कर दी। अब स्नातक ने मौलाना से पूछा बताये मौलाना जी पहले आप जोर से चिल्ला कर अपनी बात कह रहे थे, अब आप अपनी बात उतने जोर से नहीं कह रहे ऐसा क्यूँ? मौलाना ने कहा कि पहले आप दूर थे इसलिए ज्यादा जोर से आवाज़ लगनी पड़ रही थी, अब आप पास हैं इसलिए सामान्य आवाज़ से कार्य सम्पन्न हो जाता हैं। स्नातक ने उत्तर दिया बस मौलाना जी यही तो आपको समझाना था चूँकि वैदिक ईश्वर हमारी आत्मा के भीतर ही वास करता हैं इसलिए हमारे अंतर्मन में ही ईश्वर ने ज्ञान को दे दिया था, इसलिए न कोई आकाशवाणी कि आवश्यकता पड़ी और न ही कोई पैगम्बर कि आवश्यकता पड़ी। मौलाना उसका कथन सुनकर चुप हो गये और उनका मज़हबी बुखार उतर गया।
पाठकों वैदिक सिद्धांतों के अनुसार ईश्वर एक देशीय अर्थात एक स्थान पर वास करने वाला अथवा किसी एक लोक में वास करने वाला नहीं हैं जैसा कि पौराणिक समाज गोलोक, क्षीर सागर, कैलाश पर मानता हैं अथवा सातवें या चौथे आसमान पर जैसा कि सैमितिक मतों का मानना हैं। वेदों के अनुसार ईश्वर सर्वव्यापक अर्थात सभी स्थानों पर हैं, ईश्वर अपनी बनाई सृष्टि में सभी स्थानों पर तभी हो सकता हैं जब वह निराकार हैं अर्थात जिसका कोई आकार नहीं हैं। मनुष्य के भीतर आत्मा जिसे रूह अथवा soul भी कुछ लोग कहते हैं, सभी मानते हैं। ईश्वर का वास सभी प्राणियों में उनके भीतर अर्थात उनकी आत्मा में होता हैं। जब ईश्वर हमारे भीतर ही हैं, तब तो ईश्वर हमें अपना ज्ञान अर्थात वेद भीतर से ही दे सकता हैं? सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर द्वारा वेदों का ज्ञान चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य एवं अंगिरा को इसी प्रकार से उनकी आत्मा में विराजमान ईश्वर द्वारा भीतर ही दिया गया था। इसलिये न किसी प्रकार कि आकाशवाणी कि, न किसी पैगम्बर कि ईश्वर को सहायता कि आवश्यकता हैं। ईश्वर का एक गुण सर्वशक्तिमान भी हैं अर्थात जो जो कर्म ईश्वर के हैं , वो वो कर्म करने के लिए ईश्वर किसी अन्य पर आश्रित नहीं हैं, वह स्वयं से सक्षम एवं समर्थ हैं। इसलिए किसी पैगम्बर आदि से ज्ञान देने कि बात बनावटी सिद्ध होती हैं और ईश्वर द्वारा अन्तरात्मा में ज्ञान देना ज्यादा तर्क संगत सिद्ध होता हैं।
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