वेद धारा

वेद धारा

वेद धारा

वेद धारा
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अध: पश्यस्व मोपरि संतरां पादकौ हर ।
मा ते कशप्लकौ दृशन् स्त्री हि ब्रह्मा बभूविथ ।।
           - ऋग्वेद. ८/३३/९९

शब्दार्थ: (अध: पश्यस्व) हे स्त्री ! तू नीचे की ओर देख,
(मा उपरि) ऊपर की ओर नहि
(संतराम) अच्छी तरह संयमित रह
(पादकौ हर) अपने पैरों को ठीक चला
(मा ते कशप्लकौ हशन्) तेरे युगलांग दिखाई न दें,
(स्त्री हि ब्रह्मा बभूविथ) स्त्री मानव समाज की रचयिता है ।

भावार्थ : स्त्रियों के विषय में वेद निर्देश देता है कि वे अपनी दृष्टि संयमित रखे, वे इधर - उधर, उपर - नीचे ताक - झांक न करे । चलते समय अपने पैरो को सावधानी से रखे । उसके चलने - देखने या कोई व्यवहार में चंचलता न हो, हड़बड़ाहट भी न हो । स्त्री अपने युगलांगो को छिपाकर रखे उनका किसी भी प्रकार का प्रदर्शन न हो । स्त्री मर्यादा - लज्जाशील - सुशील बनी रहे । वह उत्तम ब्रह्मा है, उत्तम भविष्य की  निर्मात्री है ।

 यदि हमे परिवार, समाज और राष्ट्र को स्वस्थ, उत्तम, बलवान, समृद्ध बनाना है तो मूल धरी को ठीक, उत्तम, शालीन बनाना पड़ेगा । उत्तम फसल प्राप्त करने के लिए उत्तम बीजो का चयन करना जरूरी होता है । निकृष्ट, घटिया, हीन वीर्य, दोषयुक्त बीज उत्कृष्ट फसल कभी पैदा नहीं कर सकती ।

   आज बच्चे उद्धत, स्वच्छंदी, लंपट, आलसी, कामी, क्रोधी, व्यभिचारी हो रहे हैं उसका मुख्य कारण मां का बिगड़ना है । अन्य कारण भी है, किन्तु गौण है । मां तो बच्चो का अरीसा होती है । केवल जन्म देने से कोई मां नहीं हो जाती । जो बच्चो का निर्माण करे उसे ही मां कह सकते हैं । बच्चो को पैदा करके उसे अच्छा भोजन देना, अच्छे वस्त्र पहनाना, कही बाहर घुमा देना, इससे वह मां नहीं बन जाती । मां वास्तव में तब कहलाती है कि वह अपने बच्चो को अच्छा, धार्मिक, सुशील, चरित्रवान, राष्ट्रभक्त, ज्ञानपिपासु और स्वावलंबी बना दे ।

   आज समाज में  स्त्रियों के साथ छेड़खानी, गन्दी हरकते, दुराचार, बलात्कार आदि की जो घटनाएं घटित हो रही हैं, उनमें शीर्ष कारण खुद स्त्री है । यदि वह अच्छे, पूरे, संयमित, सादे वस्त्र धारण करे और अपने यूगलांग अर्थात् स्तन, नितम्ब आदि कामोत्तेजक अंगो को प्रदर्शित न करे तो कोई पुरुष की हिम्मत नहीं होती कि उनके साथ छेड़खानी करे । जब खुद स्त्रियां ही नैसर्गिक मर्यादा का उल्लंघन करके बन - ठन कर, रंगीले - भड़कीले, चमकीले, चुस्त वस्त्रों को पहन कर, आकर्षक श्रृंगार करके घर से बाहर गली - बाजारों में निकलेगी, तभी तो दुरात्माओं इनसे दुराचार करने का साहस करते है । स्तन - नितम्बों आदि कश प्लको का प्रदर्शन करना लम्पटता है ।  ऐसी लम्पटता के प्रदर्शन से सामान्य जन मानस में भी विषय वासना - कामुकता उभरती है । दुराचारी - कामा सक्त व्यक्ति गंदे संस्कार से रंजित होते है । वे तो अपने वो उभार को नियंत्रित न करके व्यभिचार, अनाचार, बलात्कार, हत्या जैसा नराधम कृत्य कर लेते है । आज राष्ट्र में कहां अपराधी को सख्त दंड मिलता है ? वे तो अपने पद, प्रतिष्ठा, पैसे के दम पर सभी को खरीद लेते है । 

    यदि स्त्री खुद संयमित, सादे तथा पूरे कपड़े धारण करे तो orthodox नहीं मानी जाएगी । वास्तव में छोटे कपड़े पहनना - लड़की को पहनाना छोटी ही सोच है ।

   बड़ी सोच वहीं है जो वेद कहता है कि - है स्त्री ! तू मर्यादा में रह, अपने शरीर का प्रदर्शन मत कर । तेरा चलना, बोलना, देखना, सुनना, पहनना, घूमना, व्यवहार करना सब शालीन, शिष्ट, सभ्य, भद्र एवम् नियंत्रित होना चाहिए ।
शादी होने तक कन्याओं को श्रृंगार नहीं करवाना चाहिए । सच्चा श्रृंगार तो अच्छे गुणों का धारण करने में तथा जितेंद्रिय होने में है ।

   स्त्री ही संतानों की जीवन निर्मात्री है । वहीं समाज का शीर्ष स्थान है । वहीं ब्रह्मा है ।  उस शुद्ध ज्ञानसंपन्न होना चाहिए । उसे वीर, ऊर्जावान तथा शस्त्र - शास्त्र दोनों में कुशल होना चाहिए । यदि वह दिव्यता के साथ अपनी वेश भूषा, चाल - चलन, ज्ञान - विज्ञान से अपने चरित्र को ऊपर उठाएगी तो परिवार, समाज और राष्ट्र का भविष्य अति उज्जवल बनेगा यह निश्चित है ।

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