कब्र पूजा – मुर्खता अथवा अंधविश्वास

कब्र पूजा – मुर्खता अथवा अंधविश्वास

कब्र पूजा – मुर्खता अथवा अंधविश्वास

कब्र पूजा – मुर्खता अथवा अंधविश्वास

डॉ विवेक आर्य 

चंद दिनों पहले अमिश देवगन टीवी रिपोर्टर ने मीडिया में अजमेर के ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती पर एक बयान दिया था। उनके इस बयान के विरुद्ध प्रतिक्रिया होने पर उन्होंने क्षमा मांग ली। सन 2009 में मैं दिल्ली आया था। उस समय हिन्दू राइटर फोरम के स्वर्गीय कृषणवल्लभ पालीवाल जी से मेरा विचार मन्थन अनेक विषयों पर होता था। उन्होंने मुझे ख्वाजा के इतिहास के विषय में खोज करने को कहा। उस समय तक मैंने पं गंगाप्रसाद उपाध्याय जी का मज़ार पूजा विषयक एक ट्रैक्ट ही पढ़ा था। साथ में एक अन्य अंग्रेजी पुस्तक के माध्यम से पता चला था कि 1920-30 के दशक में आर्यसमाज ने संयुक्त प्रान्त में एक विशेष आंदोलन हिन्दुओं की कब्र पूजा छुड़वाने के लिए चलाया था। उनका मुख्य लक्ष्य बहराइच स्थित सालार गाज़ी मियां की दरगाह था। मैंने नई सड़क से दो भागों में इस्लामिक इतिहासकार सैयद अतहर अब्बास रिज़वी की हिस्ट्री ऑफ़ सूफिज्म इन इंडिया ( A History of Sufism in India by Saiyid Athar Abbas Rizvi and S.S. Husain) की पुस्तक खरीद कर उसे अद्योपरांत पढ़ी। उसमें से सामग्री के आधार पर अंग्रेजी में तीन लेख लिखे। लेखों को इतना प्रोत्साहन मिला की उनका हिंदी अनुवाद भी किया। उसी लेख की सामग्री के आधार पर यह लेख कब्र पूजा: मूर्खता और अन्धविश्वास लिखा। मैं इसे छपवाकर विश्व पुस्तक मेले नई दिल्ली प्रगति मैदान और स्वामी श्रद्धानन्द बलिदान दिवस , रामलीला मैदान में बांटने गया। पालीवाल जी ने यह लेख देखकर मेरी पीठ थपथपाई और अपनी एक पुस्तक में इस सारी सामग्री का प्रयोग किया। पिछले 10 वर्षों में यह लेख लाखों बार पढ़ा गया। अनेक बार मेरा नाम हटाकर लोगों ने सोशल मीडिया में शेयर किया। अनेक यूट्यूब चैनल पर इस सामग्री के आधार पर वीडियो बनाये गए। सभी ने मिलकर परिश्रम किया। हज़ारों युवकों ने परस्पर वार्तालाप में मुझे बताया कि उन्होंने स्वयं अनेकों की कब्र पूजा इस लेख की सहायता से छुड़वाई हैं।  इस अभियान का आप भी भाग बने  यह लेख सभी हिन्दुओं को पढ़ाये और इस कब्रपूजा रूपी अन्धविश्वास से हिन्दुओं को मुक्ति दिलाये। 

कब्र पूजा – मुर्खता अथवा अंधविश्वास

 गर्मियों में देश के प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा अजमेर में दरगाह शरीफ पर चादर चढ़ाने के लिए बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नक़वी को अजमेर भेजने हैं। यह समाचार भी आपने पढ़ा होगा। पूर्व में भी बॉलीवुड का कोई प्रसिद्द अभिनेता अभिनेत्री अथवा क्रिकेट के खिलाड़ी अथवा राजनेता चादर चदाकर अपनी फिल्म को सुपर हिट करने की अथवा आने वाले मैच में जीत की अथवा आने वाले चुनावो में जीत की दुआ मांगता रहा हैं। बॉलीवुड की अनेक फिल्मों में मुस्लिम कलाकारों ने अजमेर शरीफ की प्रशंसा में अनेक कव्वालियां गाई हैं जिसमें ए. आर. रहमान की अकबर फ़िल्म का ख्वाजा मेरे ख्वाजा सबसे प्रसिद्द हैं। पाठकों को जानकार आश्चर्य होगा की सन 2006 में UPA सरकार द्वारा NCERT बोर्ड के अंतर्गत लगाए गई इतिहास पुस्तक में भी ख्वाजा की चर्चा हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक सूफी संत के रूप में की गई हैं। भारत की नामी गिरामी हस्तियों के दुआ मांगने से साधारण जनमानस में एक भेड़चाल सी आरंभ हो गयी है की अजमेर में दुआ मांगे से बरकत हो जाएगी , किसी की नौकरी लग जाएगी , किसी के यहाँ पर लड़का पैदा हो जायेगा , किसी का कारोबार नहीं चल रहा हो तो वह चल जायेगा, किसी का विवाह नहीं हो रहा हो तो वह हो जायेगा। 

कुछ प्रश्न हमें अपने दिमाग पर जोर डालने को मजबूर कर रहे हैं जैसे की यह गरीब नवाज़ कौन थे ?कहाँ से आये थे? इन्होने हिंदुस्तान में क्या किया और इनकी कब्र पर चादर चदाने से हमे सफलता कैसे प्राप्त होती है?

गरीब नवाज़ भारत में लूटपाट करने वाले , हिन्दू मंदिरों का विध्वंश करने वाले ,भारत के अंतिम हिन्दू राजा पृथ्वी राज चौहान को हराने वाले व जबरदस्ती इस्लाम में धर्म परिवर्तन करने वाले मुहम्मद गौरी के साथ भारत में शांति का पैगाम लेकर आये थे। पहले वे दिल्ली के पास आकर रुके फिर अजमेर जाते हुए उन्होंने करीब 700  हिन्दुओ को इस्लाम में दीक्षित किया और अजमेर में वे जिस स्थान पर रुके उस स्थान पर तत्कालीन हिन्दू राजा पृथ्वी राज चौहान का राज्य था। ख्वाजा के बारे में चमत्कारों की अनेको कहानियां प्रसिद्ध है की जब राजा पृथ्वी राज के सैनिको ने ख्वाजा के वहां पर रुकने का विरोध किया क्योंकि वह स्थान राज्य सेना के ऊँटो को रखने का था तो पहले तो ख्वाजा ने मना कर दिया फिर क्रोधित होकर शाप दे दिया की जाओ तुम्हारा कोई भी ऊंट वापिस उठ नहीं सकेगा।  जब राजा के कर्मचारियों ने देखा की वास्तव में ऊंट उठ नहीं पा रहे है तो वे ख्वाजा से माफ़ी मांगने आये और फिर कहीं जाकर ख्वाजा ने ऊँटो को दुरुस्त कर दिया। दूसरी कहानी अजमेर स्थित आनासागर झील की हैं। ख्वाजा अपने खादिमो के साथ वहां पहुंचे और उन्होंने एक गाय को मारकर उसका कबाब बनाकर खाया। कुछ खादिम पनसिला झील पर चले गए कुछ आनासागर झील पर ही रह गए। उस समय दोनों झीलों के किनारे करीब 1000 हिन्दू मंदिर थे, हिन्दू ब्राह्मणों ने मुसलमानो के वहां पर आने का विरोध किया और ख्वाजा से शिकायत कर दी।

ख्वाजा ने तब एक खादिम को सुराही भरकर पानी लाने को बोला।  जैसे ही सुराही को पानी में डाला तभी दोनों झीलों का सारा पानी सुख गया।  ख्वाजा फिर झील के पास गए और वहां स्थित मूर्ति को सजीव कर उससे कलमा पढवाया और उसका नाम सादी रख दिया। ख्वाजा के इस चमत्कार की सारे नगर में चर्चा फैल गई। पृथ्वीराज चौहान ने अपने प्रधान मंत्री जयपाल को ख्वाजा को काबू करने के लिए भेजा। मंत्री जयपाल ने अपनी सारी कोशिश कर डाली पर असफल रहा और ख्वाजा नें उसकी सारी शक्तिओ को खत्म कर दिया।  राजा पृथ्वीराज चौहान सहित सभी लोग ख्वाजा से क्षमा मांगने आये।  काफी लोगो नें इस्लाम कबूल किया पर पृथ्वीराज चौहान ने इस्लाम कबूलने इंकार कर दिया। तब ख्वाजा नें भविष्यवाणी करी की पृथ्वी राज को जल्द ही बंदी बना कर इस्लामिक सेना के हवाले कर दिया जायेगा। निजामुद्दीन औलिया जिसकी दरगाह दिल्ली में स्थित हैं ने भी ख्वाजा का स्मरण करते हुए कुछ ऐसा ही लिखा है।

           बुद्धिमान पाठकगन स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं की इस प्रकार के करिश्मो को सुनकर कोई मुर्ख ही इन बातों पर विश्वास ला सकता है। भारत में स्थान स्थान पर स्थित कब्रे उन मुसलमानों की हैं जो भारत पर आक्रमण करने आये थे और हमारे वीर हिन्दू पूर्वजो ने उन्हें अपनी तलवारों से परलोक पंहुचा दिया था। ऐसी ही एक कब्र बहरीच गोरखपुर के निकट स्थित है।  यह कब्र गाज़ी मियां की है। गाज़ी मियां का असली नाम सालार गाज़ी मियां था एवं उनका जन्म अजमेर में हुआ था। इस्लाम में गाज़ी की उपाधि किसी काफ़िर यानि गैर मुसलमान को क़त्ल करने पर मिलती थी। गाज़ी मियां के मामा मुहम्मद गजनी ने ही भारत पर आक्रमण करके गुजरात स्थित प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर का विध्वंश किया था। कालांतर में गाज़ी मियां अपने मामा के यहाँ पर रहने के लिए गजनी चला गया। कुछ काल के बाद अपने वज़ीर के कहने पर गाज़ी मियां को मुहम्मद गजनी ने नाराज होकर देश से निकला दे दिया। उसे इस्लामिक आक्रमण का नाम देकर गाज़ी मियां ने भारत पर हमला कर दिया।  हिन्दू मंदिरों का विध्वंश करते हुए,हजारों हिन्दुओं का क़त्ल अथवा उन्हें गुलाम बनाते हुए, नारी जाति पर अमानवीय कहर बरपाते हुए गाज़ी मियां ने बाराबंकी में अपनी छावनी बनाई और चारो तरफ अपनी फौजे भेजी। कौन कहता है की हिन्दू राजा कभी मिलकर नहीं रहे? मानिकपुर,बहराइच आदि के 24 हिन्दू राजाओ ने राजा सोहेल देव पासी के नेतृत्व में जून की भरी गर्मी में गाज़ी मियां की सेना का सामना किया और उसकी सेना का संहार कर दिया। राजा सोहेल देव ने गाज़ी मियां को खींच कर एक तीर मारा जिससे की वह परलोक पहुँच गया। उसकी लाश को उठाकर एक तालाब में फेंक दिया गया।  हिन्दुओं ने इस विजय से न केवल सोमनाथ मंदिर के लूटने का बदला ले लिया था बल्कि अगले 200 सालों तक किसी भी मुस्लिम आक्रमणकारी का भारत पर हमला करने का दुस्साहस नहीं हुआ।
                                                                                                                 कालांतर में फ़िरोज़ शाह तुगलक ने अपनी माँ के कहने पर बहरीच स्थित सूर्य कुण्ड नामक तालाब को भरकर उस पर एक दरगाह और कब्र गाज़ी मियां के नाम से बनवा दी जिस पर हर जून के महीने में सालाना उर्स लगने लगा। मेले में एक कुण्ड में कुछ बेहरूपियें बैठ जाते है और कुछ समय के बाद लाइलाज बिमारिओं को ठीक होने का ढोंग रचते है। पूरे मेले में चारों तरफ गाज़ी मियां के चमत्कारों का शोर मच जाता है और उसकी जय-जयकार होने लग जाती है।  हजारों की संख्या में मुर्ख हिन्दू औलाद की, दुरुस्ती की, नौकरी की, व्यापार में लाभ की दुआ गाज़ी मियां से मांगते है, शरबत बांटते है , चादर चदाते है और गाज़ी मियां की याद में कव्वाली गाते है।

कुछ सामान्य से 10  प्रश्न हम पाठको से पूछना चाहेंगे?

1 .क्या एक कब्र जिसमे मुर्दे की लाश मिट्टी में बदल चूँकि है वो किसी की मनोकामनापूरी कर सकती है?

2. सभी कब्र उन मुसलमानों की है जो हमारे पूर्वजो से लड़ते हुए मारे गए थे, उनकी कब्रों पर जाकर मन्नत मांगना क्या उन वीर पूर्वजो का अपमान नहीं है जिन्होंने अपने प्राण धर्म रक्षा करते की बलि वेदी पर समर्पित कर दियें थे?

3. क्या हिन्दुओ के राम, कृष्ण अथवा 33 कोटि देवी देवता शक्तिहीन हो चुकें है जो मुसलमानों की कब्रों पर सर पटकने के लिए जाना आवश्यक है?

4. जब गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहाँ हैं की कर्म करने से ही सफलता प्राप्त होती हैं तो मजारों में दुआ मांगने से क्या हासिल होगा?

5. भला किसी मुस्लिम देश में वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, हरी सिंह नलवा आदि वीरो की स्मृति में कोई स्मारक आदि बनाकर उन्हें पूजा जाता है तो भला हमारे ही देश पर आक्रमण करने वालो की कब्र पर हम क्यों शीश झुकाते है?

6. क्या संसार में इससे बड़ी मुर्खता का प्रमाण आपको मिल सकता है?

7.. हिन्दू जाति कौन सी ऐसी अध्यात्मिक प्रगति मुसलमानों की कब्रों की पूजा कर प्राप्त कर रहीं है जिसका वर्णन पहले से ही हमारे वेदों- उपनिषदों आदि में नहीं है?

8. कब्र पूजा को हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल और सेकुलरता की निशानी बताना हिन्दुओ को अँधेरे में रखना नहीं तो ओर क्या है?

9. इतिहास की पुस्तकों कें गौरी – गजनी का नाम तो आता हैं जिन्होंने हिन्दुओ को हरा दिया था पर मुसलमानों को हराने वाले राजा सोहेल देव पासी का नाम तक न मिलना क्या हिन्दुओं की सदा पराजय हुई थी ऐसी मानसिकता को बना कर उनमें आत्मविश्वास और स्वाभिमान की भावना को कम करने के समान नहीं है?

10. क्या हिन्दू फिर एक बार 24 हिन्दू राजाओ की भांति मिल कर संगठित होकर देश पर आये संकट जैसे की आंतकवाद, जबरन धर्म परिवर्तन ,नक्सलवाद,लव जिहाद, बंगलादेशी मुसलमानों की घुसपैठ आदि का मुंहतोड़ जवाब नहीं दे सकते?

आशा हैं इस लेख को पढ़ कर आपकी बुद्धि में कुछ प्रकाश हुआ होगा।  अगर आप आर्य राजा राम और कृष्ण जी महाराज की संतान हैं तो तत्काल इस मुर्खता पूर्ण अंधविश्वास को छोड़ दे | 

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