आज का चिन्तन
आज का चिन्तन

आज का चिन्तन
आज का आदमी बस दिखावे के लिए हँसता है अन्यथा हँसी से तो यह अपना सम्बन्ध कब से तोड़ चुका है। इसके होठों पर तो हँसी नजर आ जाएगी मगर हृदय में नहीं।
आदमी अकेला होता है तो इसे अपने पास हँसने का कोई कारण ही नजर नहीं आता मगर भीड़ के सामने हँसने की कला इसने खूब सीख ली है। आदमी भीतर से भले ही त्रस्त हो मगर वह दूसरों के सामने ये दिखाना चाहता है कि, मैं प्रसन्न हूँ।
यह जीवन जीना तो नहीं हुआ, हाँ समय काटना जरूर है। दिखावे की हँसी से हम दुनियाँ को तो बेवकूफ़ बनाते ही हैं मगर स्वयं के साथ भी यह एक छलावे से ज्यादा कुछ नहीं है। हम जितना सरल व सहज जीवन जिएंगे, बदले में हमको उतनी ही प्रसन्नता प्राप्त होगी।
आचार्य धर्मराज
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