वेद में सत्य पर विचार-

वेद में सत्य पर विचार-

वेद में सत्य पर विचार-

वेद में सत्य पर विचार-
                           डा. अशोक आर्य   
             ऋग्वेद में अनेक मन्त्र इस प्रकार के आते हैं जो सत्य पर 
प्रकाश डालते हुए सत्य के महत्त्व के दर्शन कराते हैं | इन मन्त्रों
से यह बात स्पष्ट होती है कि हमें सदा सत्याचरण ही करना चाहिए| इससे ही कल्याण संभव है| 
इस सम्बन्ध में ऋग्वेद ४.३३.६ में इस प्रकार उपदेश किया गया है:-
         सत्यामूचुर्नर    एवा   हि    चक्रुरनु     स्वधामृभवो| 
         विभ्राजमानांश्च्मसा ँ अहेवावेनत्त्वष्टा  चतुरो दाद्दश्वान्||ऋग्वेद ४.३३.६ ||
मनुष्य सत्य सदा बोलें
     यह मन्त्र उपदेश कर रहा है कि संसार के सब मनुष्य सदा सत्य ही बोलें , सत्य का ही
आचरण करें| सत्य में महान् शक्ति है किन्तु यह मिलती उसी को ही है, जो सत्य के मार्ग पर
चलते हैं और सदैव सत्य भाषण ही करते हैं| सत्य ही एकमेव ऐसा मार्ग है, जिस पर चल 
कर विश्व की महान् उपलब्धियां प्राप्त की जा सकती हैं जो असत्य से कभी नहीं मिल सकतीं| 
इसलिए मन्त्र का यह प्रथम उपदेश है कि सदा सत्य ही बोलें और सत्य का ही आचरण करें |
सत्य ज्ञान से ही कर्म करें 
     मनुष्य को परमपिता परमात्मा ने कर्म करने के लिए इस धरती पर भेजा है| उसे प्रभु ने 
कर्म करने की स्वतंत्रता भी दी है किन्तु इस स्वतंत्रता को भी प्रभु ने एक पाश में बाँध दिया 
है,वह यह कि जीव जो भी कर्म करेगा, उन कर्मों को करने में तो वह स्वतन्त्र है किन्तु उन 
किये गए कर्मों का फल भोगने के लिए वह प्रभु की व्यवस्था के आधीन है अर्थात् फल पाने 
के लिए प्रभु ने उसे स्वतन्त्र नहीं रखा| वेद प्रभु का ही दिया हुआ ज्ञान है| इस कारण इस 
मन्त्र में जो भी उपदेश है वह परमपिता परमात्मा का दिया हुआ उपदेश ही तो है| इसलिए 
इस मन्त्र के इस चरण में वह पिता प्राणी मात्र को उपदेश कर रहे हैं कि मनुष्य जो भी कर्म 
करे वह सत्य ज्ञान के अनुसार ही करे| इससे स्पष्ट है कि असत्य ज्ञान के आधार पर 
अथवा अज्ञान के आधार पर किया गया कर्म भी प्रभु स्वीकार नहीं करते इसलिए उन्होंने उपदेश 
किया है कि हमारा प्रत्येक कर्म सत्य ज्ञान पर ही आधारित होना चाहिए| 
सत्य ज्ञानी पौषण शक्ति को प्राप्त हों
     परमपिता इस धरती पर सत्य ज्ञान का अधिक से अधिक प्रयोग होता देखना चाहते हैं | 
प्रभु की प्रत्येक प्राणी से यह आकांक्षा रहती है कि वह सदा सत्य ज्ञान का ही अनुसरण करे| 
इस कारण यहाँ प्रभु उपदेश कर रहे हैं कि जिस प्रकार अत्यधिक प्रकाश से प्रकाशित सूर्य की 
किरणें जल को ग्रहण किया कराती हैं तो उनमें ऋत् का उदय होता है| प्रभु चाहते हैं कि सब 
प्राणी भी ऋत् को पाने के अधिकारी बनें, सदा सत्य ज्ञान का आचरण करें, उनके पास भरपूर 
तेज हो तथा भारपुर ऐश्वर्यों के वह स्वामी हों| इस प्रकार के गुणों से भरपूर विद्वान् जन इस 
सत्यमयी स्वधा शक्ति से अपनी आत्मा की धारण करने वाली तथा पौषण करने वाली शक्ति को 
सदा प्राप्त करें | 
कर्मों को कांति सम चमकते हुए देखें 
     इस प्रकार से सत्य का दर्शन करने वाला प्राणी सूर्य के समान तेजस्वी पुरुष निश्चय 
पूर्वक, सदैव धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष रूपि इन चारों प्रकार के कर्मों को बादलों के समान, सब 
प्रकार के भोगने योग्य पदार्थों को देने वाले प्रभु, तथा सब परकार के अन्नों के समान तथा 
विशेष प्रकार के प्रकाश से प्रकाशित कांति के समान चकते हुए न केवल देखें ही अपितु इन्हें 
देखने की सदा ही कामना करते रहें | 
     इस मन्त्र का मनन व चिंतन करने पर हम पाते हैं कि ऋग्वेद के इस मन्त्र के माध्यम 
से उपदेश करते हुए परमपिता परमात्मा ने चार बातों पर बल दिया है, जो इस प्रकार हैं:-
१. मनुष्य सदा सत्य बोलें
२. सत्य ज्ञान से ही कर्म करें 
३. सत्य ज्ञानी पौषण शक्ति को प्राप्त हों
४. कर्मों को कांति सम चमकते हुए देखें 
     मन्त्र के माध्यम से परमपिता परमात्मा ने इन चार बिन्दुओं पर ऋग्वेद के अध्याय 
चार सूक्त ३३ के मन्त्र संख्या ६ में यह स्पष्ट किया है कि सत्य ही सब सुखों का आधार है , 
सत्य के प्रकाश में निवास करते हुए ही हम धर्म का आचरण कर सकते हैं| इस मार्ग के पथिक 
के मुखमंडल प्रसाद रूप काँति छाई रहती है और इस पथ के पथिक विशेष रूप से पुष्ट होते हैं| 
उन में उत्तम कार्य करने की शक्ति सदा बनी ही रहती अपितु बढती भी रहती है| इस तथ्य के 
आधार पर ही हम कह सकते हैं कि महर्षि दयानंद सरस्वती जी एक युग दृष्टा महापुरुष थे| 
उन्होंने परमपिता परमात्मा के उपदेशों को निकट से जाना था| प्रभु के उपदेशामृत अर्थात् वेद 
ज्ञान का गहन स्वाध्याय कर के उसे आत्मसात् किया था और जब आर्य समाज के नियम 
बनाने का समय आया तो उन्होंने सत्य प्रभु के इस सत्याचरण के उपदेश को ही प्राथमिकता 
दी और आर्य समाज के नियमों में प्रथम स्थान सत्य को ही दिया और कहा कि “ “सब सत्य 
विद्या और जो पदार्थ सत्य से जाने जाते हैं उन सब का आदि मूल परमेश्वर है |”
     इन शब्दों से स्पष्ट होता है कि सब प्रकार के सत्य और उन सत्यों से जिन पदार्थों को 
जाना जा सकता है, उन सबके मूल में परमपिता परमेश्वर ही निवास करता है| इसलिए हमें सदा 
सत्य का ही आचरण करना चाहिये| असत्य से सदा दूर रहना चाहिए| इस में ही हमारी उन्नति 
है, इस में ही हमारी समृद्धि है और इसमें ही हमें ऐश्वर्यों की प्राप्ति है|अत: सत्य को कभी न छोड़ें |

डा. अशोक आर्य