होलिका दहन - दोहे
होलिका दहन - दोहे
1--होली जलतीफाग में, अवगुण रूप अधार
प्रेम रंग सौहार्द में , रमे सभी व्यवहार ।।
2--दहन होलिका यज्ञ है, मिलजुल आहुति दान ।
रहे शुद्ध पर्यावरण , और प्रकृति सम्मान ।।
3--कहीं जला कन्दर्प तो ,कहीं जला अभिमान ।
कुंदन जैसा चमकता, सत्य बुद्ध का मान ।।
4-- जली होलिका आग में , बच निकला प्रह्लाद ।
फूलों की फूटी हँसी , छलका नव आह्लाद ।।
5--अंतिम उत्सव वर्ष का , विदा पुरातन साल ।
नए अन्न का आगमन , हर्षोल्लास विशाल ।।