शाब्दिक ज्ञान से कल्याण  नहीं होता, वास्तविक / व्यवहारिक / यथार्थ / तत्त्वज्ञान से कल्याण होता है।

 शाब्दिक ज्ञान से कल्याण  नहीं होता, वास्तविक / व्यवहारिक / यथार्थ / तत्त्वज्ञान से कल्याण होता है।

 शाब्दिक ज्ञान से कल्याण  नहीं होता, वास्तविक / व्यवहारिक / यथार्थ / तत्त्वज्ञान से कल्याण होता है।

       शाब्दिक ज्ञान से कल्याण  नहीं होता, वास्तविक / व्यवहारिक / यथार्थ / तत्त्वज्ञान से कल्याण होता है।
        संसार में चार प्रकार का ज्ञान होता है मिथ्याज्ञान, संशयज्ञान, शाब्दिक  ज्ञान, और तत्त्वज्ञान।
मिथ्याज्ञान का अर्थ है भ्रांति। जैसे रस्सी को जहरीला साँप समझ लेना।
संशयज्ञान का अर्थ है, जब वस्तु समझ में ही न आए, कि यह रस्सी है या सांप?
 शाब्दिक ज्ञान का अर्थ है, शब्द से आपने वस्तु को ठीक जान/मान लिया, परंतु आचरण वैसा नहीं कर रहे। जैसे साँप को सांप तो मान लिया, पर उस जहरीले सांप के साथ अभी भी खेल रहे हैं। यह नहीं समझा कि यदि यह काट लेगा तो आपकी मृत्यु हो सकती है।
 चौथा तत्त्वज्ञान होता है। अर्थात जैसी वस्तु है उसको ठीक ठीक वैसा ही जाना माना और वैसा आचरण भी किया। जैसे जहरीले सांप से बचकर दूर रहे, अपनी रक्षा की।
       इस प्रकार से ज्ञान कुल मिलाकर चार प्रकार का हुआ।
       मिथ्याज्ञान तो वैसे ही हानिकारक है। रस्सी को साँप समझ लेना और उससे डरना। अपने सारे काम छोड़कर भाग जाना। इससे तो हानि हुई, आपके काम रुक गए। डर भी लगा। जबकि साँप तो था ही नहीं।
संशय में भी कोई लाभ नहीं हुआ। समझ ही नहीं आ रहा कि यह रस्सी है या सांप? तब भी काम रुक गए।
शाब्दिक ज्ञान में आपने यह तो समझ लिया कि सामने जहरीला सांप है। परंतु उससे अपनी रक्षा नहीं की। उससे दूर नहीं गए, और उसके साथ खेलते रहे। मृत्यु का खतरा मोल लिया। इस से भी लाभ नहीं हुआ।
वास्तविक लाभ तो तब हुआ जब आपने साँप  के विषय में तत्त्वज्ञान प्राप्त किया, कि यह जहरीला सांप है, यदि काट लेगा तो मृत्यु हो जाएगी। इसलिए इस से दूर रहना चाहिए। तब उससे दूर रहकर आपने अपनी रक्षा की, तो पूरा लाभ तभी हुआ। 
इसी प्रकार से सभी क्षेत्रों में समझना चाहिए।
       अब प्रश्न यह है कि इस तत्वज्ञान तक कैसे पहुंचें? उसका उपाय है, मिथ्या ज्ञान और संशय से बाहर निकलें। पहले शाब्दिक ज्ञान प्राप्त करें। शाब्दिक ज्ञान, तत्त्वज्ञान तक पहुंचने की सीढ़ी है। यदि किसी को शाब्दिक ज्ञान नहीं है, तो वह तत्त्वज्ञान तक नहीं पहुंच पाएगा। इसलिए पहले आपको शाब्दिक ज्ञान प्राप्त करना पड़ेगा। उसके बाद उस पर बहुत लंबा चिंतन मनन विचार करना पड़ेगा। बार-बार शाब्दिक ज्ञान की आवृत्ति करनी पड़ेगी।  दोहराना पड़ेगा। उसका जीवन में आचरण प्रयोग परीक्षण कर करके देखना पड़ेगा। तब जाकर वह शाब्दिक ज्ञान, तत्त्वज्ञान में बदलेगा।  
      अब यदि कोई केवल पुस्तक पढ़ कर मात्र शाब्दिक ज्ञान प्राप्त कर लेवे, आगे तत्त्वज्ञान तक न पहुंचे, तो उसे पूरा लाभ नहीं मिलेगा। उसका कल्याण नहीं होगा।
        इसलिए शाब्दिक ज्ञान प्राप्त करके मिथ्या संतोष नहीं कर लेना चाहिए, कि आपने सब कुछ सीख लिया है। अब और आगे कुछ जानने की आवश्यकता नहीं है। 
अतः आगे भी पुरुषार्थ करें, तत्त्वज्ञान प्राप्त करें, कभी कल्याण होगा। जैसे दुर्योधन कंस और रावण आदि ने शाब्दिक ज्ञान प्राप्त किया, उनका कल्याण नहीं हुआ।
      श्री रामचंद्र जी महाराज, श्री कृष्ण चंद्र जी महाराज, महर्षि दयानंद सरस्वती जी महाराज ने तत्त्वज्ञान प्राप्त किया। उन सब महापुरुषों का कल्याण हुआ।
        इसी प्रकार से, संसार दुखमय है। ईश्वर आनंदस्वरूप है। सब दुखों का निवारक है। 
      जब तक यह शाब्दिक ज्ञान रहेगा, तब तक इससे कल्याण नहीं होगा। जब यह तत्त्वज्ञान बन जाएगा, तब आप केवल ईश्वर को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाएंगे, और संसार की दुखमय चीजों से बचने का प्रयास करेंगे। ताकि आप सब दुखों से छूट कर पूर्ण आनंदस्वरूप ईश्वर को प्राप्त करें, और आनंदित होवें। इसलिए आपको वास्तविक ज्ञान / यथार्थज्ञान / तत्त्वज्ञान को प्राप्त करना चाहिए। उसी से आप सबका कल्याण होगा।
 - स्वामी विवेकानंद परिव्राजक

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