जामिया में दलितों के साथ होती नाइंसाफी पर चुप्पी साध लेते हैं दलित मसीहा

जामिया में दलितों के साथ होती नाइंसाफी पर चुप्पी साध लेते हैं दलित मसीहा

जामिया में दलितों के साथ होती नाइंसाफी पर चुप्पी साध लेते हैं दलित मसीहा

 

जामिया में दलितों के साथ होती नाइंसाफी पर चुप्पी साध लेते हैं दलित मसीहा

देवराज सिंह

जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय के शिक्षक, छात्र और उनसे सहानुभूति रखने वाले कथित बुद्धिजीवी सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर संविधान की दुहाई देते नहीं थकते हैं। लेकिन जब बात विश्वविद्यालय के दोहरे रवैये की आती है, दलितों और जनजातीय समुदाय के साथ होते बुरे व्यवहार के खिलाफ आवाज उठानी होती है तो स्वघोषित बुद्धिजीवी वर्ग बर्फीली चुप्पी साध लेते हैं।

 

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के होते हुए जामिया मीलिया विश्वविद्यालय क्यों बनाई गई, इसका उद्देश्य क्या था? विवि में किस तरह की शिक्षा विद्यार्थियों को दी जाएगी, ऐसे कई प्रश्न हैं जिसके उत्तर हमें जामिया विवि के इतिहास का जब अध्ययन करेंगे तो मिल जाएंगे। लेकिन जामिया अपने कार्यों एवं उद्देश्यों से भटक गयी और उसने भी मजहब के आधार पर भेदभाव प्रारंभ कर दिया।

जब इस विश्वविद्यालय की स्थापना एक पार्लियामेंट एक्ट के तहत हुई है तो इसे केंद्र के नियमों का पालन करना भी अनिवार्य है, जिसमें एससी एवं एसटी के लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था का प्रावधान है। लेकिन 2011 से विश्वविद्यालय ने एससी-एसटी के अध्यापकों, छात्रों को आरक्षण देने से इंकार कर दिया एवं उनके साथ भेद भाव करना प्रारंभ कर दिया। इसी तरह का भेदभाव देश के अन्य विश्वविद्यालयों एवं कॉलेजों में भी किया जा रहा है।
लेकिन पिछले 6 साल से देश में एक ऐसा वातावरण बनाया जा रहा है कि मुसलमान ही दलितों का हितैषी है, तो सवाल उठता है कि अगर मुसलमान इतने ही हितैषी हैं तो फिर इन विश्वविद्यालय व कॉलेजों में शिक्षकों व विद्यार्थियों की स्थिति दयनीय क्यों है।

 

आज कल जामिया विश्वविद्यालय के खासकर शिक्षक, छात्र और उनसे सहनुभूति रखने वाले बुद्धिजीवी वर्ग सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर संविधान की दुहाई देते नहीं थकते हैं। पंथनिपेक्षता और समावेशी बिंदु पर मौजूदा केंद्रीय सरकार और विधि व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाते हैं। लेकिन जब बात इस विश्वविद्यालय के दोहरे रवैये की आती है, दलितों और जनजातीय समुदाय के साथ होते बुरे व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाना होता है तो स्वघोषित बुद्धिजीवी वर्ग बर्फीली चुप्पी साध लेते हैं।
ज्ञात होना चाहिए कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है जो भारतीय संविधान के एक्ट से गठित हुआ है। जामिया एक्ट 1988 के 7वें अनुच्छेद के अनुसार, जामिया में अनुसूचित-जाति-जनजाति, दिव्यांग जन और महिलाओं को भारत सरकार के नियमानुसार आरक्षण की व्यवस्था होगी।


1988 से लेकर 2011 तक प्रवेश और नौकरियों की भर्ती में इसका अनुपालन भी होता आया। मगर, साल 2011 में केंद्र में कांग्रेस की तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने अल्पसंख्यकों को रिझाने के लिए अलग से एक नया राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग का गठन करके उसके एक फैसले से जामिया विश्वविद्यालय को एक मुस्लिम अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय बना दिया और अनुसूचित जाति-जनजाति और दलित छात्रों को जामिया विश्वविद्यालय में आरक्षण को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया। यह फैसला आज भी दिल्ली उच्च न्यायालय में विचाराधीन है।


लेकिन आज संविधान की दुहाई देने वाले इस विश्वविद्यालय के शिक्षक संघ और विश्वविद्यालय प्रशासन ने बिना एक पल गंवाए भारत सरकार द्वारा आधारित आरक्षण को एकाएक हटा दिया और प्रवेश में 50 फीसदी मुस्लिम आरक्षण तत्काल प्रभाव से दे दिया। बावजूद इसके कि अल्पसंख्यक वाला फैसला दिल्ली उच्च न्यायालय में चैंलेंज किया गया है और वह विचाराधीन है। इस फैसले से दलित छात्रों को सम्पूर्ण रूप से प्रवेश प्रक्रिया में मिलने वाले आरक्षण को खत्म कर दिया गया।
हद तो तब हो गई जब जामिया प्रशासन ने 2014 में अपनी नौकरियों और प्रमोशन से भारत सरकार द्वारा प्रदत दलितों के आरक्षण को समाप्त कर दिया।
दोहरे रवैये को दिखाते बिंदु
-जामिया विश्वविद्यालय में साल 1988 से लेकर 2011 तक दलितों को आरक्षण भारत सरकार के आधार पर दिया गया, जबकि साल 2011 के बाद से समावेशी नजरिए को न अपनाते हुए एससी-एसटी वर्ग का आरक्षण समाप्त कर दिया।


 

- विश्वविद्यालय में जिन दलितों को आरक्षण के आधार पर शिक्षण और अन्य पदों पर साल 2011 से पहले नौकरी मिली, उनके साथ भी पक्षपात का रवैया अपनाया जाता है, घरों के आवंटन अन्य जगहों तक में।
यहां गौर करने वाली बात यह है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय अभी भी जामिया विश्वविद्यालय को एक केंद्रीय विश्वविद्यालय मानता है, न की अल्पसंख्यक। मंत्रालय का मानना है की मजहबी अल्पसंख्यक वाला मामला हाइकोर्ट में विचाराधीन है। आज तक विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय के रूप में भारत सरकार के गैजेट्स में नोटिफाई तक नहीं है। वहीं जामिया एक्ट, 1988 में कोई संशोधन नहीं हुआ है। लिहाजा पैरा 7 में दिया गया अनुसूचित-जाति-जनजाति और दलितों को आरक्षण, भारत सरकार के हिसाब से ही होना लाजमी है, जो कि जामिया विश्वविद्यालय प्रशासन जान-बूझकर देने से मना करता है


बहरहाल, जिन मुसलमानों को वाकई में दलितों की इतनी फिक्र है तो दलितों का हक क्यों नहीं देते ? क्यों जामिया विश्वविद्यालय और उसके शिक्षक, छात्र और उनसे सहनुभूति रखने वाले कथित बुद्धिजीवी वर्ग बाबासाहेब आंबेडकर के बनाए संविधान के तहत, जामिया में दलितों को उनका हक, उनका आरक्षण नहीं देते हैं ? क्यों आज दलित-मुस्लिम एकता की दुहाई देने वाली कांग्रेस, सपा, मायावती, ओवैसी, लालू यादव, और वामपंथी दल जामिया विश्वविद्यालय में पीड़ित, वंचित, शोषित दलितों और पिछड़ों केे शिक्षा के अधिकार पर आवाज नहीं बुलंद करते ? क्या मुसलमान जामिया विश्वविद्यालय में दलितों और पिछड़ों को आरक्षण न देकर उनका राजनीतिक शोषण नहीं कर रहे हैं ? यह कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके उत्तर इन दलों और नेताओं को देने चाहिए। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि इस मुदृदे पर इनकी आवाज नहीं निकलेगी।


(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के गार्गी कॉलेज में सहायक प्राध्यापक हैं)

 

Arya Samaj Marriage helpline Indore,

Arya Samaj Mandir Indore

, Hindi Vishwa

, Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore,

Indore Aarya Samaj Mandir

, Indore Arya Samaj Mandir address

, Maharshi Dayanand Saraswati

, Hindu Matrimony in Indore,

Arya Samaj Intercast Marriage

, Intercast Matrimony in Indore

, Arya Samaj Wedding in Indore,

Hindu Marriage in Indore,

Arya Samaj Temple in Indore

, Marriage in Indore,

Arya Samaj Marriage Rules in Indore

, Maharshi Dayanand Saraswati.

Wedding Guidelines for Groom and Bride in arya samaj mandir Indore |