प्रधानमंत्री की गाल और आर्यसंन्यासी!
प्रधानमंत्री की गाल और आर्यसंन्यासी!
प्रधानमंत्री की गाल और आर्यसंन्यासी!
लोक श्रुति है कि भारत की चीन से हार के बाद... अजमेर के एक कार्यक्रम मे PM नेहरू आए... वेद संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए.. नेहरू ने कहा, "इस देश में हमेशा से ही शरणार्थियो का स्वागत किया गया हैं। यहां शक आए, हूण आए, मुस्लिम आए, अंग्रेज आए, आर्य आए और यहां की संस्कृति मे घुलमिल गए।"
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मुख्य अतिथि आर्य संन्यासी स्वामी विद्यानन्द विदेह अपने मंच से उठे और नेहरू को जोरदार थप्पड जड़ दिया..!! और माइक अपनी ओर करके संन्यासी बोले... "आर्य कहीं से आते-जाते नहीं क्योंकि आर्य तो श्रैष्ठ, सज्जन लोगों को कहा जाता है। किसी भी देश के नागरिक आर्य हो सकते हैं। इसीलिए आर्य कहीं आए नहीं, यहीं के मूलनिवासी और मूलनायक हैं। सबूत मैं हूँ... मेरे बाप-दादा सब यहीं पैदा हुए... उनके बाप- दादा सब यहीं पैदा हुए और मैं बुराइयों को छोड़कर आर्य बना, संन्यासी बना। हाँ! तुम इस देश के मूल निवासी नहीं...आपकी रगों मे हिन्दुस्तानी नहीं अरबी ख़ून हैं। कोई बात नहीं। आप भी आर्य बन सकते हैं। आपकी जगह आज सरदार पटेल प्रधनमंत्री होते तो हम चीन से हारते नहीं, वरन हमारे पूर्वजों की जन्मस्थली कैलाश तिब्बत भी भारत का अभिन्न अंग होता।"
(बाद मे इन आर्य संन्यासी ने एक किताब लिखी नेहरू : उत्थान और पतन... जो 1963 मे बैन हो गई थी।)
जब नेहरू की गाल चांटा जड़ा जा सकता है तो मूर्तिपूजक तथाकथित आर्यस माजी पंचों, सरपंचों, विधायकों, सांसदों, राज्यपालों को क्यों नहीं?
क्या आर्यसमाज में आज कोई योद्धा आर्यसंन्यासी नहीं है, जो आर्यपूर्वजों को मांसाहारी, शराबी, हिंसक, बलात्कारी, चोर, जार बताने वाली CBSE, NCERT की पुस्तकों की प्रकाशक तथाकथित राष्ट्रवादी सरकार से जवाब तलब कर सके? काश सत्ता के चाटुकार संन्यासियों में से कोई मोक्ष-मोक्ष छोड़ कोई प्रधानमंत्री न सही आर्यसमाजी जनप्रतिनिधियों की गाल को लाल करता!
-आर्यवीर विजय
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