आप इस पृथ्वी पर अतिथि बनकर आए हैं, स्वामी नहीं।

आप इस पृथ्वी पर अतिथि बनकर आए हैं, स्वामी नहीं।

आप इस पृथ्वी पर अतिथि बनकर आए हैं, स्वामी नहीं।

आप इस पृथ्वी पर अतिथि बनकर आए हैं, स्वामी नहीं।
        संसार में अधिकांश लोग स्वयं को यहां की संपत्तियों का मालिक समझते हैं। उनके विचार इस प्रकार के होते हैं, यह मकान मेरा है। मैं इसका मालिक हूँ। यह कार मेरी है। यह बैंक बैलेंस मेरा है। यह परिवार मेरा है। यह बेटा मेरा है। यह सम्मान मेरा है। यह विद्या मेरी है, मैं इन सब वस्तुओं का मालिक हूँ, इत्यादि। 
        इस मैं और मेरी के चक्कर में बेचारे जीवन भर दुखी रहते हैं। इन वस्तुओं की प्राप्ति और सुरक्षा में सारा जीवन तनाव में जीते हैं । मैं यह नहीं कहना चाहता कि इन वस्तुओं का उपयोग और सुरक्षा न करें । 
मैं यह कहना चाहता हूं कि इन वस्तुओं का उपयोग और सुरक्षा इस प्रकार से करें, जैसे किसी धर्मशाला में कोई अतिथि वहां की वस्तुओं का प्रयोग और सुरक्षा करता है। वह धर्मशाला की वस्तुओं का मालिक स्वयं को नहीं मानता, केवल उपयोगकर्ता के रूप में ही स्वयं को स्वीकार करता है।
परंतु स्वयं को इन वस्तुओं का मालिक मानने वाले लोग, वास्तव में भ्रांतियों में जी रहे हैं।
शायद आप भी ऐसा ही सोचते होंगे।
         जिन जिन वस्तुओं को आप, मेरा है, या मेरी है, ऐसा मानते हैं, वास्तव में उन सब वस्तुओं में से आपकी वस्तु तो शायद ही कोई हो। मेरे विचार से वस्तु तो आपकी कोई भी नहीं होगी । उन वस्तुओं को प्राप्त करने का थोड़ा सा पुरुषार्थ बस आपका है, इससे अधिक कुछ नहीं। 
क्योंकि जब आप इस संसार में आए थे, इस पृथ्वी पर आप ने जन्म लिया था, तब आप अपने साथ कुछ भी नहीं लाए थे। और जब इस संसार से जाएंगे, तब भी आप कुछ भी अपने साथ नहीं ले जाएंगे। सब जमीन मकान बंगला कार संपत्ति रुपया पैसा बेटा पत्नी परिवार सब यहीं छोड़कर जाएंगे। 
तो फिर क्यों भ्रांति में जी रहे हैं, कि यह मेरा है, यह मेरी है. 
सत्य तो यह है कि, आपने पूर्व जन्मों में कुछ पुरुषार्थ किया, जिसके कारण आपको इस जन्म में पैदा होते ही ईश्वर ने कुछ चीजें दे दीं। माता-पिता परिवार खाने पीने की सुविधाएं इत्यादि.  फिर चार-पांच वर्ष की आयु में अपने स्कूल में पढ़ाई शुरू की । और कुछ पढ़ लिखकर विद्या प्राप्त की। फिर आपने धन कमाया। मकान बनाया। कार खरीदी। खाना-पीना घूमना फिरना सारे काम किए। यह सारी संपत्ति आपने यहीं पर ही प्राप्त की। इनकी प्राप्ति में सिर्फ थोड़ा सा पुरुषार्थ ही आपका है। बाकी संपत्तियां आपने सब यहीं से ली हैं,  और जब संसार छोड़कर जाएंगे, तब भी यहीं छोड़कर ही जाएंगे। इसलिए आपका कुछ नहीं है।
जैसे आप कभी-कभी किसी धर्मशाला में होटल में या किसी मित्र रिश्तेदार के घर पर जाते हैं और अतिथि बनकर रहते हैं। दो-चार दिन रहते हैं । फिर वापस अपने घर आ जाते हैं । वहां सदा नहीं रहते।
 इसी प्रकार से आपने इस पृथ्वी पर जन्म लिया है । यहाँ पर कुछ लंबा समय रहेंगे.
 70, 80 या 90 वर्ष ।  सदा तो यहां भी नहीं रहेंगे। उसी प्रकार से अतिथि बनकर फिर यहां से प्रस्थान करेंगे। 
इसलिए सत्य यही है , कि आप यहां वस्तुओं के मालिक नहीं हैं। ईश्वर इन सब वस्तुओं का मालिक है। आप यहां अतिथि बनकर आए हैं अतिथि बनकर रहें ।
 और जैसे अतिथि धर्मशाला छोड़कर चला जाता है, उसे कोई दुख नहीं होता। यदि आप भी यहाँ संसार में अतिथि बनकर रहें , तो संसार छोड़कर जाते समय आपको भी दुख नहीं होगा।
  स्वामी विवेकानंद परिव्राजक

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