लॉक डाउन या एकांत वास को जेल की तरह न बनाएँ। उसका भी आनन्द लेवें।

लॉक डाउन या एकांत वास को जेल की तरह न बनाएँ। उसका भी आनन्द लेवें।

लॉक डाउन या एकांत वास को जेल की तरह न बनाएँ। उसका भी आनन्द लेवें।

   लॉक डाउन या एकांत वास को जेल की तरह न बनाएँ। उसका भी आनन्द लेवें।
            आजकल लॉक डाउन चल रहा है। आपको घर पर रहना पड़ता है। बाहर जाने के लिए डॉक्टर लोग तथा सरकार मना करती है। घर में बैठे-बैठे बोर हो जाते हैं। एकांत अच्छा नहीं लगता, जेल की तरह लगता है। जी हां, जिनको संसार में राग द्वेष (अटैचमेंट और जलन, गुस्सा) अधिक होता है, उनको एकांत स्थान वास्तव में जेल की तरह ही लगता है , दुखदायक होता है। क्योंकि वे घर से बाहर निकल कर मनचाहा खाना-पीना घूमना फिरना मनोरंजन सैर सपाटा करना इत्यादि कार्य नहीं कर पाते। 
        पिछले वर्षों में इस प्रकार के कार्य करते करते आपके सांसारिक राग द्वेष के संस्कार बन चुके हैं। अब जब वे चीजें खाने पीने भोगने को नहीं मिल रही, तो उनके संस्कार ही आपको दुख दे रहे हैं। यदि इन दुखों से बचना हो, तो उसका एक उपाय है वैराग्य। जिन लोगों को वैराग्य है, जो संसार की चीजों में , खाना-पीना घूमना फिरना सैर सपाटे आदि में सुख नहीं लेते, वे वैरागी लोग ऐसी स्थिति में दुखी भी नहीं होते। क्योंकि उन्होंने पहले सुख नहीं लिया। इसलिये उनके राग के संस्कार नहीं बने। जब राग के संस्कार ही नहीं हैं, तो वे दुख कैसे देंगे?
        इसलिए ऋषियों ने कहा है कि जिन्हें वैराग्य होता है, उनके लिए तो एकांतवास अत्यंत सुखदायक है। वे लोग एकांत में ईश्वर का ध्यान चिंतन मनन स्वाध्याय आदि करके उसी से आनंद ले लेते हैं। परंतु जिन्हें संसार में मोहमाया राग द्वेष है, सांसारिक वस्तुओं में ही जो लोग अपना सुख ढूंढते हैं, और जब मजबूरन एकांत में रहना पड़े, उनको वे वस्तुएं उपलब्ध नहीं हो पातीं, तब उनके राग द्वेष के संस्कार ही उन्हें दुख देते हैं।
      तो आप संसार की चीजों में सुख न लेकर जीवन रक्षा के लिए संसार की चीजों का उपयोग करें। सेवा परोपकार मोक्ष प्राप्ति आदि प्रयोजन से सांसारिक कार्यों को करें।       यदि सुख लेना हो, तो आध्यात्मिक सुख लेवें। कैसे?  ईश्वर का ध्यान यज्ञ स्वाध्याय आदि शुभ कर्म करके अंदर से मानसिक सुख प्राप्त करें।  इसे आध्यात्मिक सुख भी कहते हैं। इस सुख को आप एकांत में भी प्राप्त कर सकते हैं। तब आपको यह एकांत या लॉक डाउन दुखी नहीं करेगा।
 - स्वामी विवेकानंद परिव्राजक


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