सावरकर का माफीनामा
सावरकर का माफीनामा
सावरकर का माफीनामा
क्या सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी थी
विक्रम संपथ जी ने ('सावरकर- इकोज़ फ्रॉम द फॉरगॉटन पास्ट') लिखने से पहले 40,000 पृष्ठों के दस्तावेजों का अध्ययन किया। इसी पुस्तक से उत्तर।
उत्तर : सावरकर को लेकर ये बहुत बड़ा भ्रम फैलाया जाता है कि उन्होंने मर्सी पिटीशन फाइल कर माफी मांगी थी. ये कोई मर्सी पिटीशन नहीं थी ये सिर्फ एक पिटीशन थी. जिस तरह हर राजबंदी को एक वकील करके अपना केस फाइल करनी की छूट होती है उसी तरह सारे राजबंदियों को पिटीशन देने की छूट दी गई थी. वे एक वकील थे उन्हें पता था कि जेल से छूटने के लिए कानून का किस तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं. उनको 50 साल का आजीवन कारावास सुना दिया गया था तब वो 28 साल के थे. अगर ये जिंदा वहां से लौटते तो 78 साल के हो जाते. इसके बाद क्या होता उनका? न तो वो परिवार को आगे बढ़ा पाते और न ही देश की आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दे पाते. उनकी मंशा थी कि किसी तरह जेल से छूटकर देश के लिए कुछ किया जाए. 1920 में उनके छोटे भाई नारायण ने महात्मा गांधी से बात की थी और कहा था कि आप पैरवी कीजिए कि कैसे भी ये छूट जाएं. गांधी जी ने खुद कहा था कि आप बोलो सावरकर को कि वो एक पिटीशन भेजें अंग्रेज सरकार को और मैं उसकी सिफारिश करूंगा. गांधी ने लिखा था कि सावरकर मेरे साथ ही शांति के रास्ते पर चलकर काम करेंगे तो इनको आप रिहा कर दीजिए. ऐसे में पिटीशन की एक लाइन लेकर उसे तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है.
सावकर को अंग्रेजों से पेंशन क्यों मिलती थी?
उत्तर : जेल से रिहा होने के बाद सावरकर को रत्नागिरी में ही रहने को कहा गया था. अंग्रेज उन पर नजर रखते थे. उनकी सारी डिग्रीयां और संपत्ति जब्त कर ली गई थी. ऐसे राज बंदियों को जिन्हें कंडीशनल रिलीज मिलती थी उन सभी को पेंशन दी जाती थी. उस समय अंग्रेजों का ये था कि हम आपको काम करने की छूट नहीं देंगे, आपकी देखभाल हम करेंगे.
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