राजा सत्यवाणी से युक्त हो 

राजा सत्यवाणी से युक्त हो 

राजा शुभकीर्ति से युक्त हो   

 


           हे राजा !  तूं शुभ कीर्ति वाला बन |  कीर्ति अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी हो सकती है |  मन्त्र राजा को केवल कीर्ति युक्त होने की प्रेरणा नहीं दे रहा अपितु शुभ कीर्ति की प्रेरणा दे रहा है | मन्त्र कहता है तेरी कीर्ति में तेरी निरंकुशता न दिखाई दे | तेरी कीर्ति तेरी क्रूरता के कारण न हो अपितु तेरी कीर्ति का कारण तेरी सुकीर्ति हो , तेरे अच्छे काम हों , तेरे जन हितैषी कार्य हों | इसलिए तूं सदा अच्छे काम कर , जन हित के काम कर , जिससे प्रजा का हित हो इस प्रकार के कार्य कर | इस प्रकार के कार्यों से ही तेरी सुकीर्ति होगी | सर्वत्र तेरे उत्तम गुणों की चर्चा होगी | इस से ही तूं प्रजा के हृदयों का सम्राट बनेगा | तेरे यश व कीर्ति के गुणों का गान सर्वत्र होगा |
राजा सत्यवाणी से युक्त हो 
           इसके साथ ही साथ हे राजन् !  सत्यवाणी वाला भी बन कर रहना |  अपने किसी भी कार्य में सत्य को कभी न छोड़ना |  जो कहना वही करना |  कहीं ऐसा न हो कि जनता को छलने के कार्य करने के लिए सत्य को ही त्याग दे |  कहे तो कुछ किन्तु करे कुछ , इस प्रकार की इच्छा कभी मत करना |  इस प्रकार के कार्यों से जनता विरोधी बन जाती है |  जिसने भी किसी प्रकार के मंगल का करना होता है , उसे सत्य का ही आश्रय लेना होता  है , सत्य को ही साधन बनाना होता है |  इसके बिना कभी किसी प्रकार का मंगल कार्य नहीं किया जा सकता | यदि राजा जन कल्याण की घोषनाएं तो बड़ी बड़ी कर दे किन्तु करे कुछ भी न अथवा उसके उल्ट करे तो यह राजा का भयंकर झूठ , उसके लिए भयंकर गलती सिद्ध होता है |  जब राजा ने प्रजा से कुछ उत्तम करने का आश्वासन दिया है किन्तु उस आश्वासन को पूरा करने के लिए करता कुछ भी नहीं तो निश्चय ही प्रजा उसके विरोध में आ खड़ी होती है तथा उसे पदच्युत करने के प्रयास करने लगती है , उस राजा के विरोध में खड़ी हो जाती है तथा तब तक विरोध करती रहती है , जब तक उस राजा का समूल नाश न हो जावे |  इस लिए मन्त्र के माध्यम से पुरोहित राजा का राज तिलक करते हुए राजा को उपदेश कर रहा है कि वह शुभकीर्ति पाने के लिए सदा सत्यवाणी का ही प्रयोग करे न कि केवल ताली पिटवाने के लिए झूठे वायदे करे तथा उन वायदों को कभी पूरा करने की सोचे तक भी नहीं |
                                              ३१                   राजनीतिक समस्याएँ वेद में समाधान                                  
          इस प्रकार हे राजन् ! तूं जनता के हित के लिए सत्य का प्रकाशक बन | जो कह , वह सत्य कह , जो कर , वह भी सत्य कर | तूं इस प्रकार का सत्य प्रकाशक बन कि प्रजा तेरी प्रत्येक बात को , तेरे प्रत्येक कर्म को सत्य स्वीकार करे | तेरे प्रत्येक सत्य को पूर्ण करने के लिए प्रजा सदा तेरे आदेशों का पालन करते हुए उसे पूर्ण करने में दिन-रात लगा देवे | 
          मन्त्र पुरोहित को जननायक मानता है | वास्तव में है भी ऐसा ही क्योंकि पुरोहित जनता के प्रतिनिधि स्वरूप , जनता के नायक स्वरूप ही राजा का अभिषेक कर रहा है | वह राजा को जो कुछ भी कहता है जननायक के नाते कहता है | इस लिए उस का प्रत्येक कथन या राजा के लिए उसका प्रत्येक उपदेश रूप में कहा गया प्रत्येक शब्द जन - जन के हित के लिए ही होता है | इस सत्य को साकार करते  हुए यजुर्वेद के ही मन्त्र २०.३ में भी यह उपदेश , यह निर्देश देते हुए कहा गया है कि :-   
     अश्विनोर्भषज्येन  तेजसे  ब्रह्मवर्चसायाभि  धिञचामि  सरस्वत्यै  भैषज्येन 
    वीर्यायान्नाद्यायाभि षीञचामिन्द्रस्येव्द्रियेण बलाय श्रियै यशसेSभिषीञचामि ||
                                                                   ( यजुर्वेद २०.३ )