योग साधना
योग साधना
महर्षि देव दयानन्द जी ने वेदाधारित पंच महायज्ञों का विधान प्रत्येक आश्रम में यथायोग्य पदध्तिनुसार और गृहस्थ आश्रम के लिए पांचों को अवश्यमेव हेतु से उपदेशित किया।
उस में भी प्रथम ब्रह्मयज्ञ के लिए रात्रि के चर्तुथ पहर के प्रारंभ का समय इंगित करते हुए कहीं निश्चित रूप से ऋषि आश्वस्थ रहे होंगे कि साधारण गृहस्थ भी अगर ईश्वरीय वेदोक्त अमृत ब्रह्मयज्ञ को उत्साह,श्रद्धा, समर्पित तपस्वी हो आत्मसात् करने में जुट जाता है तो वो योग दर्शन को जीवंत रूपेण सहजता से साथ साथ प्राप्त होता जाएगा।
ब्रह्मयज्ञ में योग दर्शन का सम्पूर्ण यौगन्धरायण प्रक्रिया समाहित है।
गुरुमंत्र (गायत्री मंत्र) को पढ़ते हुए एक निर्मल सत्यता से परिपूर्ण संकल्प धारण करना चाहिए कि
हे परमपिता परमात्मा! मैं (आत्मा) अपने परिवार (सुक्ष्म शरीर--अंत:करण,पंच प्राण,पंच ज्ञानन्द्रियां, पंच कर्मेन्द्रियां) के साथ अपने सत्-चित्त-आनन्द स्वरूप पिता को मनाने आया हूं।हे पिता! अल्पज्ञ्यता,अज्ञानता के कारण मैंने और मेरे परिवार ने नाना विधि आप पिता का अपमान किया-पर मेरे प्रभु तू मुझ को बता तेरे सिवा मैं क्या करूं--तेरी शरण को छोड़ कर किसी की शरण में जा पड़ूं।
* माता पिता,बन्धु सखा, गुरु, आचार्य,राजा, न्यायधीश और दयालु एकमात्र आप ही हो-मेरे तो। मेरे प्रभु-आप को मेरा सहाय होना ही पड़ेगा, नहीं तो मेरे परमात्मा मैं, मेरा परिवार पतन रूपी अन्धकार में घिरकर प्रकाश की किरण को भी तरस जाएंगे।