आज का वेदमंत्र,
आज का वेदमंत्र,
अनुवाद महात्मा ज्ञानेन्द्र अवाना जी
वि श्रयन्तामृतावृधः प्रयै देवेभ्यो महीः।
पावकासः पुरुस्पृहो द्वारो देवीरसश्चतः॥ ऋग्वेद १-१४२-६।।
शरीर को एक पवित्र स्थान बनाओ। जो अशुद्धि है उसे शरीर के द्वारों से बाहर करो। इंद्रियों द्वारा ज्ञान को लाओ और अशुद्धि को बाहर करो। पवित्रता और ज्ञान को शरीर में बसाओ। नियंत्रित इंद्रिया मनुष्य को मुक्ति के पथ पर ले जाती है।