सुविचार
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ऊँची डिग्री के साथ-साथ, व्यवहार भी ऊंचा होना चाहिए।
सुख तो सभी चाहते हैं। और सुख प्राप्ति के लिए आजकल बहुत से लोग ऐसा सोचते हैं, कि यदि मेरे पास C.A., M.B.A., M.Tech. इत्यादि इस प्रकार की कोई ऊँची डिग्री हो, अच्छा बँगला हो, लंबी सी एयर कंडीशंड कार हो, नौकर चाकर हो, खूब धन संपत्ति हो, मेरा बहुत सा सम्मान भी हो, तो मैं बहुत सुखी हो जाऊंगा।
परंतु इन सब चीजो के होने पर भी बहुत से लोग दुखी चिंतित परेशान तनावयुक्त और स्वयं को एक सीमा तक असफल जैसा अनुभव करते हैं। उनके जीवन में संतोष तृप्ति शांति आनंद नहीं दिखाई देता। इसलिए वे दुखी एवं उदास रहते और दिखते भी हैं।
अब क्या कमी रह गई, जिसके कारण वे असफल सा अनुभव करते हैं?
ऋषि लोग कहते हैं, उनके जीवन में उत्तम व्यवहार की कमी है। वे अधिक मात्रा में स्वार्थ से युक्त हैं, सेवा परोपकार सभ्यता नम्रता मधुर भाषा दान दया आनंद आदि उत्तम गुण उनके जीवन व्यवहार में नहीं हैं, या बहुत कम हैं। जिसके कारण वे दुखी एवं परेशान रहते हैं।
इसलिए यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन को सब प्रकार से सुखी संतुष्ट एवं सफल बनाना चाहता हो, तो उसे ऊँची ऊंची डिग्रियों के साथ-साथ उत्तम व्यवहार को भी अपनाना होगा। यह उत्तम व्यवहार ही उसके जीवन की सफलता का मुख्य कारण है। और इसी के कारण ही वह ऊंचा व्यक्ति माना जाएगा।
- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक