मार्जन मंत्र । प्राणायाम मन्त्र

मार्जन मंत्र । प्राणायाम मन्त्र

मार्जन मंत्र । प्राणायाम मन्त्र

तृतीय क्रिया – मार्जनमंत्रा: (पवित्रता सम्पादन )
      द्वितीय क्रिया में हमने आत्म निरिक्षण के लिए अंगस्पर्श मन्त्रों का गायन किया और अब तृतीय क्रिया के अंतर्गत हम मार्जन मन्त्रों के द्वारा परमात्मा के विभिन्न गुणों का स्मरण करते हैं यथा सत्य,सुखप्रदता,महानता,ताप आदि | यह परमात्मा के महान् गुण हैं , यह परमात्मा के गुणात्मक नाम हैं | हमने संध्या के इन मन्त्रों के माध्यम से इन गुणों का अपने में आघान करना है | जब हम इन गुणों के माध्यम से प्रभु का स्मरण करते हैं तो हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हम भी इन गुणों को अपने में लाने का प्रयास करें | इस प्रकार प्रभु के स्मरण किये गए गुणों का अपने शरीर के विभिन्न अंगों में आघान करने का कार्य हम संध्या के इस भाग में करते हैं | परमपिता परमात्मा के विशेष गुणों के आघान को ही पवित्रता के रूप में जाना जाता है | इस प्रकार हम अपने शरीर को पवित्र करते हैं |
चतुर्थ क्रिया – प्राणायाम मंत्रा: 
                ओउम् भू: | ओउम् भुव: | ओउम् स्व: | ओउम् मह: |
                 ओउम् जन: | ओउम् तप: | ओउम् सत्यम् ||तैत्ति.

आ.प्रपा.१०| अनु.२७ ||
       इस मन्त्र को प्राणायाम मन्त्र के रूप में संशया में स्थान दिया गया है | प्राणायाम से शरीर को तप कर हम अपने शरीर की आतंरिक शुद्धि करते हैं | प्राणायाम से मार्जन की पूर्णता प्राप्त होती है | इस मन्त्र के द्वारा हम मार्जन मन्त्रों से की गई क्रिया में रह गई कमीं को पूर्ण करते हैं | परमपिता परमात्मा के विभिन्न गुणों को मार्जन के माध्यम से हमने आत्मसात् करने का यत्न किया था किन्तु इस की मजबूत जड़ हम अपने अन्दर जमा नहीं पाए | यह जड़ पूर्णत: नहीं जम पाई , इसलिए हम प्राणायाम मन्त्र करते हैं | अब हम प्राणायाम के द्वारा मन को शांत तथा शक्ति से पूर्ण बनाकर , अपनी इन्द्रियों के दोषों को दूर करने तथा इसके साथ ही साथ उस प्रभु के गुणों का एक बार फिर से अपने अन्दर आघान करने का प्रयास करते हैं | इस सम्बन्ध में पंचशिखाचार्य्य जी ने इस प्रकार कहा  है :
                    तपो न परं प्रनायामात् ,
                    ततो विशुद्धिर्मलानां , दिप्तिश्च ज्ञानस्य |
       इसका भाव है कि यहाँ तक तो पापों के संस्कारों की निवृति का यत्न हुआ | इससे भी यह तथ्य स्पष्ट होता है कि मार्जन तथा प्राणायाम मन्त्रों से आतंरिक और बाह्य आत्मशुद्धि करने का कार्य किया जाता है | जब तक आत्म शुद्धि नहीं होती तब तक संध्या के लाभ नहीं मिल सकते | इसलिए आत्मशुद्धि का संध्या में विशेष महत्त्व है |