ध्यान में न आये व्यवधान क्या करें व्यवहारकाल में समाधान

ध्यान में न आये व्यवधान क्या करें व्यवहारकाल में समाधान

ध्यान में न आये व्यवधान क्या करें व्यवहारकाल में समाधान

ध्यान भाग-
ध्यान में न आये व्यवधान क्या करें व्यवहारकाल में समाधान
१-हम जैसा सोचते हैं वही बाते हमारे मन में संचित भी होती जाती हैं। इसलिये हमेशा भद्र सोचें।
२- हम जो भी कर्म करते हैं वह भी हमारे मन मस्तिष्क पर स्थित हो जाते हैं इसलिए ईश्वर के अनुकूल और अधिक से अधिक ईश्वर सम्बन्धी विशेष कर्म करें-दान, दया, परोपकार, जप, तप आदि।
३- हम जो भी बोलते हैं वह हम स्वयं सुनकर भी मन में डाल रहे होते हैं इसलिए सत्य, हितकर, प्रिय श्रुतिसम्मत वचन ही बोलें।
४-हमारा बैठना उठना चलना फिरना वार्ता करना शिष्टाचार से भरा हो, ऊटपटांग नहीं।
५- वेदानुकूल आर्ष ग्रन्थों का ही पठन पाठन, श्रवण श्रावण, गुनन गुनावन ही हो।
६- नियमित दिनचर्या जागरण और शयन व्यवस्थित, निश्चित, आरामदायक हो।
७-ईश्वर की प्रति वस्तु ईश्वर के सभी जनों के लिए है केवल मेरे लिए नहीं,यह भाव प्रतिक्षण बना रहे।
८- हम सब भगवान के हैं भगवान से मिलने के लिए आये हैं भगवान ही हमारा अंतिम माता पिता बन्धु सखा भर्ता है।
९- भगवान प्रदत्त शक्ति व कृपा से ही हम सभी कार्य एवं जप उपासना भी कर पा रहे हैं।
१०- जो भी सांसारिक सुख दुःख हैं वे तो धूप छाँव हैं,
जिन्हें श्रम और विश्राम की भांति समझ कर ईश्वर की ओर बढ़ना है।।
-आचार्या विमलेश बंसल आर्या
 

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