||दोहे ||
||दोहे ||
प्रीत जगी गुरु छाँव में, प्राण रमे पतझार!
नैन बसी बरसात है , याद करूँ करतार !!
जीवन पथ आँसू भरा , बहता नीर अपार!
करुणा कण बिखरे यहाँ,राग घिरा विस्तार!!
प्यास बुझी कब कामना, तडपाती दिन रात!
छाया बनकर घेरती, दोड़े चित उत्पात !!
रंग भूमि यह विश्व है , भटक रहा अस्तित्व!
संचित राग विराग से , डोल रहा व्यक्तित्व !!
मूल स्त्रोत है प्रेम का, साधक कर्म निखार !
बिखरा गुरु आलोक है , भीतर भाव निहार!!