ओ३म् इषे त्वोर्ज्जे....पशून् पाहि
आज का वेद मंत्र (ओ३म् इषे त्वोर्ज्जे....पशून् पाहि)
ओ३म् इषे त्वोर्ज्जे त्वा वायव स्ध देवो व: सविता प्रार्पयतु श्रेष्ठतमाय कर्मण आप्यायध्वमध्न्या इन्द्राय भागं प्रजावतीरनमीवाऽअयक्ष्मा मा व स्तेन ईशत माघ शंसो ध्रुवा अस्मिन् गोपतौ स्यात बह्वीर्ययजमानस्य पशून् पाहि।
अर्थ -: हे सर्वरक्षक- सर्वव्यापक जगदीश! हम अन्नादि इष्ट पदार्थों के लिए तथा बलादि की प्राप्ति के लिये आपका आश्रय लेते है। हे परमदेव! हम वायु के सदृश पराक्रम वाले बने। हे सब जगत के उत्पादक देव! यज्ञादि श्रेष्ठ कर्मों के लिए हम सबको अच्छी प्रकार संयुक्त करो, हम यज्ञ-कर्म द्वारा अपने ऐश्वर्य को आगे बढाएं। यज्ञ -सम्पादन के लिए न मारने योग्य बछड़ो सहित गौवें प्राप्त करें , जो यक्ष्मादि रोगों से शून्य हो ।पापी,चोर,डाकू लूटेरे आदि हम पर राज्य न कर सकें , हमारी गौओं और भूमि के स्वामी न बनें । हम सदा प्रयत्नशील रहें कि जिससे सुख देने वाली पृथ्वी और गौ आदि सज्जन पुरुषौ के पास बढ़ती रहें । हे परमात्मा! यज्ञकर्त्ता- धर्मात्मा पुरुष के दोपाये और चौपाये जीवों की आप सदा रक्षा करों।