विनायक दामोदर राव सावरकर

विनायक दामोदर राव सावरकर
विनायक दामोदर राव सावरकर

स्वतंत्रता संग्राम के वीर सेनानी विनायक दामोदर राव सावरकर जिनके शरीर को अंग्रेजों ने तड़पा तड़पा कर जीते जी ही मार डाला था ! उनको सजा काटने के लिए भारत से मीलों दूर अंडमान अर्थात 'काला पानी' भेज दिया गया । उन्हें सेल्युलर जेल में १३.५X७.५ फीट की घनी अंधेरी कोठरी में रखा गया था । वहां जेल में जहां वीर दामोदर राव सावरकर की काल कोठरी थी वहां के अंडमान में सरकारी अफसर बग्घी में चलते थे और सावरकर समेत तमाम कैदियों को इन बग्घियों को बैलों की भांति कंधों पर खींचना पड़ता था ! जब कैदी बग्घियों को खींचने में लड़खड़ा जाते थे तो उन्हें चाबुक से पीटा जाता था, उनके पीठ पर चाबुक लगते लगते घाव हो जाते थे ऐसी भयंकर अवस्था में भी उस कालकोठरी में न तो कोई हवा, जल, रहने व शौचालय की उनके लिए कोई विशेष व्यवस्था थी ! वीर सावरकर जी को बैल की भांति आंखों पर पट्टी बांध कर कोल्हू चलाकर तेल भी निकालना पड़ता था ! किसके लिए ? अपने देश की स्वतंत्रता के लिए ! फिर भी उन सोने के चमच से दूध पीने वाले, चांदी के बर्तनों में खाने वाले कुछ परिवारवादी लोगों को वीर सावरकर जी के तप, त्याग, साहस और शौर्य का अहसास नहीं होता ! अहसास हो भी तो कैसे हो ? आजतक उन्होंने वीर सावरकर जी के संघर्षमय जीवन की यशोगाथा को ही नहीं पढ़ा होगा !