वैदिक लेख
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हितैषी तथा परोपकारी व्यक्तियों को पहचान कर ही अपना दुख बताएं, सबको नहीं
जीवन में छोटे बड़े दुख आते ही रहते हैं। जब दुख आते हैं, तो व्यक्ति परेशान होता है। और आपने कहावत सुनी होगी कि दुख बांटने से कम हो जाता है, और सुख बांटने से बढ़ता है.
इसलिए व्यक्ति अपने दुख को कम करने के लिए किसी दूसरे के साथ अपना दुख बांटता है, अर्थात उसे सुनाता है। कि मेरे साथ आजकल यह परिस्थिति चल रही है। मैं बहुत परेशान हूं, दुखी हूं । आप कृपया मेरी सहायता करें।
जो लोग उस दुखी व्यक्ति के परिचित होते हैं, मित्र होते हैं या हितैषी होते हैं, उनमें से कुछ लोग उस व्यक्ति के दुख को सुन तो लेते हैं, लेकिन कोई सहायता नहीं करते। उसका दुख दूर करने का कोई प्रयत्न नहीं करते।
* कुछ लोग दयालु स्वभाव के होते हैं। वे दुखी व्यक्ति के प्रति हित की भावना भी रखते हैं, और उसके दुख को दूर करने का प्रयत्न भी करते हैं।*
व्यवहार में जो भी व्यक्ति आपको मिलता है और आपसे सहानुभूति का व्यवहार करता है, तो उसका परीक्षण. अवश्य करें कि यह जो व्यक्ति मेरेे प्रति सहानुभूति रखता है, वह वास्तविक है, या दिखावा मात्र है! ऐसा परीक्षण सभी को सभी का करना चाहिए। क्यों? क्योंकि एक दिन आपके जीवन में भी ऐसी परिस्थिति आ सकती है, कि जब आपको भी दूसरों का सहयोग लेना पड़ जाए!
और जब आपके जीवन में ऐसी परिस्थितियां आएँ, तब आप भी अपना दुख दूसरों को बताएँ। अवश्य बताएं। अपना दुख हल्का करें। यही बुद्धिमत्ता है। तथा ऐसे आपत्ति काल में दूसरों का सहयोग लें भी।
और जब दूसरे लोग आपत्ति में हों, तब आप उनको सहयोग दें भी। परंतु अपना दुख बताते समय यह ध्यान अवश्य रखें, कि "जिसको मैं अपना दुख बता रहा हूं, क्या वह वास्तव में मेरी समस्या को दूर करने के लिए कुछ सहयोग करेगा भी या नहीं?"
यदि पिछले परीक्षण के आधार पर आपको ऐसा लगता है, कि यह व्यक्ति मेरी सहायता करेगा, तब तो उसको अपना दुख सुनाएं। और यदि पिछले अनुभव के आधार पर ऐसा लगता हो, कि यह सहायता नहीं करेगा, बल्कि मेरी खिल्ली उड़ाएगा, मेरा मजाक बनाएगा, तो ऐसे व्यक्ति के सामने अपना दुख न कहें। अन्यथा ऐसे अपात्र के सम्मुख अपना दुख बताने से आपका दुख और अधिक बढ़ जाएगा। - स्वामी विवेकानंद परिव्राजक
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