होली का इतिहास 

होली का इतिहास 

होली का इतिहास 

में "होलिका" बोल रही हूँ,

     "मेरे प्यारे अनार्य भाइयो और बहनों में आपकी बहन 'होलिका' बोल रही हूँ, वही होलिका जिसे हर साल आप जलाते हैं, और दूसरे दिन नशे में धुत्त होकर कीचड़ गोबर और रंगों से जीभर कर होली खेलकर खुशियां मानते हैं ।

    आज में वह सच्चाई बता रही हूँ, जो हजारों साल से इन झूंठे मक्कार फरेबी पाखंडी आर्यों ने आप लोगों से छुपाई है, कि उस रात मेरे साथ क्या हुआ था और मैं कैसे जली थी ?

     मेरा घर लखनऊ के पास हरदोई ज़िले में था, मेरे दो भाई थे राजा हिरण्याक्ष और राजा हिरण्यकश्यप। मेरे बड़े भाई राजा हिरण्याक्ष ने आर्यों द्वारा कब्ज़ा की हुई सम्पूर्ण भूमि को जीतकर अपने कब्ज़े में कर लिया था। यही से आर्यो ने अपनी दुश्मनी का षड़यंत्र रचना शुरू किया। 

     मेरे भाई हिरण्याक्ष को विष्णु नामक आर्य राजा ने धोखे से मार डाला था। जिसकी वजह से मेरे छोटे भाई राजा हिरण्यकश्यप ने अपने भाई के हत्यारे विष्णु की पूजा पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। लेकिन हिरण्यकश्यप के पुत्र  प्रह्लाद को विष्णु ने नारद नामक आर्य से जासूसी कराकर उसे गुमराह किया और अपने झांसे में लेकर घर में फूट डलवा दिया। प्रह्लाद गद्दार निकला और विष्णु से मिल गया तथा दुर्व्यसनों में पड़कर पूरी तरह आवारा हो गया। सुधार के तमाम प्रयास विफ़ल हो जाने पर राजा ने उसे घर से निकाल दिया।

     अब प्रह्लाद आर्यो की आवारा मण्डली के साथ रहने लगा, वह अव्वल नंबर का शराबी और आवारा बन गया। परंतु मेरा (होलिका) स्नेह अपने भतीजे प्रह्लाद के प्रति बना ही रहा। मैं अक्सर राजा से छुपकर प्रह्लाद को खाना खिलाने आती थी। 

     फागुन माह की पूर्णिमा थी, मेरा विवाह तय हो चुका था, फागुन पूर्णिमा के दूसरे दिन ही मेरी बारात आने वाली थी। मैंने सोचा कि आखिरी बार प्रह्लाद से मिल लू, क्योंकि अगले दिन मुझे अपनी ससुराल जाना था। जब मैं प्रह्लाद को भोजन देने पहुंची तो प्रह्लाद नशे में इतना धुत था कि वह खुद को ही संभाल नहीं पा रहा था। फिर क्या था, प्रह्लाद की मित्र मण्डली (आर्यो) ने मुझे पकड़ लिया और मेरे साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। इतना ही नहीं भेद खुलने के डर से उन लोगों ने मेरी हत्या भी कर दी और मेरी लाश को भी जला दिया।

    जब दूसरे दिन मेरे भाई राजा हिरण्यकश्यप को यह बात पता चली तो उन्होंने मेरे बलात्कारी हत्यारों को पकड़ लिया और उनके माथे पर तलवार की नोंक से 'अवीर' (अ+वीर अर्थात कायर) लिखवा कर उनके मुख पर कालिख पोतकर, जूते-चप्पल की माला पहनाकर पूरे राज्य में जुलुस निकलवाया। जुलुस जिधर से भी गया हर किसी ने उन बलात्कारी हत्यारे आर्यों पर कीचड़, गोबर, कालिख फ़ेककर उनका तिरस्कार किया । 

    परन्तु इन झूंठे फरेबी मक्कार पाखंडी आर्यो ने मेरी इस सहादत की सच्चाई को छुपाकर 'होलिका दहन' के रूप में एक त्योंहार बना दिया है, और आप लोग अपनी अज्ञानतावश इनके झांसे में आकर अपनी ही अनार्य बहन 'होलिका' को हर साल जलाकर दूसरे दिन नशे में धुत होकर एक दूसरे को कीचड़, गोबर, रंग लगाकर खुशियां मनाते हो ।